
नटराज – उदयशंकर
निश्चित है कि हिमालय के सानिध्य में उदय शंकर जी ने भी शिव-पार्वती को और अधिक गहराई के साथ समझा होगा, तभी तो शिव तांडव में वह ऐसा नृत्य प्रस्तुत करते कि लगता जैसे साक्षात शिव ही मंच पर उतर आए हैं।
-प्रतिभा नैथानी-

भारत में आधुनिक नृत्य अर्थात बैले डांस के प्रवर्तक उदय शंकर माने जाते हैं। लंदन में आयोजित एक नृत्य नाटिका में उदय शंकर को शिव की भूमिका निभाने का मौका मिला। हालांकि उन्होंने नृत्य की विधिवत शिक्षा ग्रहण नहीं की थी, लेकिन जैसा कि उन्होंने बचपन से ही अपने घर में कला और संगीत का माहौल देखा था तो अपनी आंखों, उंगलियों, बांहों, चेहरे और देह के कंपन से प्रेम, क्रोध, करुणा, दुख, ग्लानि, आश्चर्य, संताप, खुशी जैसे मानवीय भावों का ऐसा सजीव प्रदर्शन किया कि दर्शकों ने दांतों तले उंगली दबा दी । रूसी कलाकार अन्ना पाव्लोवा ने उन्हें राधा- कृष्ण पर आधारित बैले में कृष्ण की भूमिका निभाने का आग्रह किया। रुसी राधा और भारतीय कृष्ण के अलौकिक नृत्य ने उन्हें लोकप्रियता के चरम पर पहुंचा दिया।
अब उदय शंकर ने नृत्य में ख़ास रुचि लेनी शुरू कर दी । भारतीय शास्त्रीय नृत्य,पौराणिक कथाएं और जनजातीय नृत्य को आपस में मिलाकर उन्होंने ऐसी विधा सृजित की जिसने विश्व भर में उनके नाम की धूम मचा दी। उदय शंकर ने अपना एक ग्रुप बना लिया जिसमें पश्चिमी नृत्य और थिएटर की जानी-मानी हस्ती ज़ोहरा सहगल , उजरा बट्ट समेत उदय शंकर के पांचो भाइयों के साथ-साथ उनकी मां हेमांगिनी देवी भी शामिल थीं। तब क्या मां को कोई पूर्वाभास था , जिसे एक के बाद एक जब पांच पुत्र हो गए तो कन्या की आस को धूमिल मानकर वह पुत्र उदय शंकर को ही साड़ी पहनाकर , गहनों से सजाकर नृत्य की भाव-भंगिमा सिखाती ।
गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर भी उदय शंकर के प्रशंसक थे। उन्हीं की सलाह पर उन्होंने अल्मोड़ा में एक सांस्कृतिक केंद्र खोलने का निर्णय लिया। वहां सिमटोला नामक एक छोटी सी जगह पर कथकली के शंकरन नम्बूदरी , भरतनाट्यम के कंण्डपन पिल्लई और मणिपुरी नृत्य के धुरंधर शिक्षक अम्बी सिंह नृत्य की शिक्षा देते। जोहरा सहगल कोरियोग्राफी सिखाती थीं । सीखने वालों में शामिल थे गुरुदत्त, कामेश्वर सहगल, शांता गांधी, अमला शंकर, सचिन शंकर, रुमा गुहा, प्रभात गांगुली, अली अकबर खान और पंडित रवि शंकर जैसे अनेक प्रतिभावान शिष्य। उदय शंकर के ग्रुप को यूरोपीय देशों से बहुत पैसा मिलता था, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस पर विराम लग गया। केंद्र को चलाने में इससे बड़ा व्यवधान आया और चार साल बाद यह बंद ही हो गया।
निश्चित है कि हिमालय के सानिध्य में उदय शंकर जी ने भी शिव-पार्वती को और अधिक गहराई के साथ समझा होगा, तभी तो शिव तांडव में वह ऐसा नृत्य प्रस्तुत करते कि लगता जैसे साक्षात शिव ही मंच पर उतर आए हैं। वहां से लौटकर उन्होंने मुंबई में इप्टा की सदस्यता ग्रहण कर ली। कल्पना नाम से एक नृत्य फिल्म भी बनाई। फिल्म की नायिका थीं उनकी पत्नी ‘अमला शंकर’ । फिर मजदूरों के लिए भी कुछ नृत्य नाटिकाएं तैयार की। और अंत में शांतिनिकेतन के पास ही फिर एक कला केंद्र खोला। इस तरह उम्र भर नृत्य की साधना में रत रहते हुए 26 सितंबर 1977 को इस महान नर्तक ने संसार से विदा ली। आधुनिक नृत्य में उपलब्धियों के लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। पद्म विभूषण श्री उदय शंकर जी ख़ुद स्वीकार करते थे कि वह दिन भर में तेरह-चौदह घंटे नृत्य का अभ्यास किया करते थे। याद कीजिए ‘गाइड’ फिल्म का वह दृश्य जिसमें रोज़ी को रियाज जारी रखवाने के लिए राजू कहता है – ‘मैं चाहता हूं कि नृत्य की दुनिया में एक दिन तुम्हारा भी उदयशंकर जैसा नाम हो’ ।
हां ! कर्म के प्रति सम्पूर्ण निष्ठा का भाव ही तो वह सीढ़ी है, जिस पर चढ़कर आप हिमालय से भी ज्यादा ऊंचे हो जाते हैं।