
महाधिवेशन से पहले कांग्रेस नेताओं के यहां छापों से पार्टी में उबाल
-द ओपिनियन-
तीन दिन बाद रायपुर में कांग्रेस का पूर्ण अधिवेशन शुरू हो रहा है। लेकिन इससे पहले सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय ने छत्तीसगढ में 17 जगह छापे मारने की कार्रवाई शुरू कर दी। छापे कोयला घोटाले के सिलसिले में मारे जा रहे हैं। छापों का निष्कर्ष क्या निकलता है यह तो अभी सामने आना है लेकिन इस पर सियासी संग्राम शुरू हो गया है। यह स्वाभाविक भी है। छापों की टाइमिंग ही ऐसी है। कांग्रेस को लगता है कि ये छापे अधिवेशन में बाधा डालने का एक जरिया है। क्योंकि छापे छत्तीसगढ में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के यहां मारे जा रहे हैं। किनके यहां छापे मारे गए और क्या बात सामने आई यह तो अभी विस्तृत रूप से सामने आना शेष है लेकिन इससे प्रदेश के साथ ही देश की सियासत गरमाएगी। क्योंकि कांग्रेस के लिए यह अधिवेशन बहुत अहम है।
पार्टी अपने लिए एक नया रास्ता तलाशने में जुटी है। पार्टी ने छापों पर सवाल उठाए हैं। उसने कहा है कि यह कार्रवाई अधिवेशन को डिस्टर्ब करने के लिए की गई हैं। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने छापों की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए इसे बदले की कार्रवाई करार दिया। हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बात से इनकार किया और कहा कि बदले की भावना से कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
विपक्षी एकजुटता पर होना है फैसला
उदयपुर के चिंतन शिविर के बाद कांग्रेस की यह सबसे बडी बैठक होगी जहां पार्टी के भविष्य की रूपरेखा तय की जाएगी। इसी बैठक में अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा नीत गठबंधन को एकजुट होकर चुनौती देने पर फैसला होगा। विपक्षी एकता की बात सभी करते हैं पर इस एकता का स्वरूप क्या हो इसकी सभी की अपनी अपनी परिभाषा है। कांग्रेस को एक अधिवेशन ऐसे समय हो रहा है जब पार्टी भारत जोड़ो यात्रा से बने माहौल के बाद उत्साह से लबरेज है। पार्टी को लगता है कि वह अभी भी विपक्षी एकता की धुरी बन सकती है।
कई चुनौतियां हैं पार्टी के सामने
उदयपुर चिंतन शिविर के बाद पार्टी में एक बड़ा बदलाव यह आया कि एक गांधी नेहरू परिवार के बाहर का व्यक्ति पार्टी का अध्यक्ष बना। फिर एक दलित समुदाय के व्यक्ति को इस पद पर आसीन किया गया। पार्टी की यह बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण पहल थी। लेकिन सारे प्रयासों के बावजूद पार्टी कई राज्यों में जारी अंतर्कलह को दूर नहीं कर पाई। यह उसके एक बड़ी नाकामी है क्योंकि जिन राज्यों में पार्टी को इस समस्या से जूझना पड़ रहा है वहां इसी साल चुनाव भी होने हैं। राजस्थान में लगातार खींचतान जारी है। इसके साथ पार्टी को युवा रूप देने का फैसला भी अभी जमीन पर उतरना शेष है। रायपुर में प्रस्तावित अधिवेशन में इन मसलों पर चर्चा होना निश्चित है। पार्टी को फिर उठ खड़े होने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार पर अपने बूते पर खड़ा होना होगा। पार्टी जब तक वहां मजबूत नहीं होगी तब तक सत्ता तो बहुत दूर की बात है विपक्षी खेमे में उसे चुनौती देने वाले भी उससे आगे रहेंगे। कांग्रेस को फिर से जवां होने के लिए उत्तर प्रदेश व बिहार में अपने लिए संजीवनी तलाशनी होगी। वहां समर्पित टीम जुटे और पार्टी के लिए अमृत मंथन करे। भले ही उनके हिस्से में विष आए।