
-विष्णु देव मंडल-
चेन्नई। मूसलाधार बारिश से आईटी हब बेंगलुरु शहर अस्त व्यस्त हो गया। बारिश का पानी घरों में भर गया तो सड़कों पर कीमती वाहन जल भराव के कारण तैरते नजर आए। यदि जल निकासी की मुकम्मल व्यवस्था नहीं हो तो बारिश का पानी बाढ़ का रुप ले लेता है और लोगों को जान -माल की हानि उठानी पड़ती है। यह सरकारी तंत्र की विफलता का परिणाम है जो एक आधुनिक शहर जल भराव से निबटने में नाकामयाब रहा। कमोबेश ऐसी स्थिति भारत के प्रत्येक महानगर की नजर आती है। साउथ का प्रमुख महानगर चेन्नई भी इस तरह की खामियों से अछूता नहीं है।

चेन्नई महानगर में ड्रेनेज व्यवस्था भगवान भरोसे है। पिछली बार महानगर में बाढ़ के हालात पैदा हुए थे। इसके बाद ड्रेनेज सिस्टम की खामी दूर करने के प्रयास शुरू किए गए। कहने को तो तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में आधुनिक और हाईटेक ड्रेनेज का निर्माण पिछले 7 सालों से हो रहा है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ ओर ही है।
70 फीसदी काम अधूरा
देखा जाए तो अभी भी 70 फीसदी काम अधूरा पड़ा हुआ है। महानगर के सभी रिहायशी इलाके भी जलजमाव से जुझ रहे हैं, जबकि ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन के अधिकारी यह कहते पाए जा रहे हैं कि प्रशासन ने आने वाले उत्तर पूर्व मानसून की बारिश के मद्देनजर सभी तैयारी पूरी कर ली है। जबकि ग्राउंड रिपोर्ट अधिकारियों के जुबान से बिल्कुल उलट है। बताते चलें कि 1058 किलोमीटर लंबी ड्रेनेज का निर्माण पिछले कई वर्षों से जारी है लेकिन इसे पूरा होने में लंबा समय लग सकता ह।ै ग्रेटर चेन्नई कारपोरेशन के अनुसार ड्रेनेज निर्माण का कार्य आगामी अक्टूबर तक पूरा हो जाएगा लेकिन धरातल पर ऐसा नजर नहीं आ रहा है। महानगर के पाश इलाका कोडंबकम् नुगमबक्कम, तेनमपेट, आलवरपेट, मांउटरोड, आदि में ही ड्रेनेज निर्माण का कार्य पूरा नहीं हुआ है तो ग्रामीण अंचलों और बाहरी इलाकों की स्थिति के बारे में तो चर्चा ही नहीं की जा सकती। यहां उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों छिटपुट बरसात में ही महानगर के कई इलाके जलमग्न हो गए थ।े वहीं सड़कों पर भारी जलजमाव देखने को मिला था महानगर में हो रहे निर्माण की साइट पर सुरक्षा व्यवस्था बेहतर नहीं होने के कारण कई मोटर बाइक सवार गड्ढे में गिर कर चोटिल हो गए थे। वहीं कई आवारा पशुओं ने गड्ढे में गिर कर अपनी जान गंवा दी।
2015 की मूसलाधार बारिश की कटु स्मृति आज भी ताजा
उल्लेखनीय है कि बेंगलुरु में महज 13 सेंटीमीटर बारिश से जहां शहर अस्त व्यस्त हो गया वहीं पिछले साल चेन्नई में 20 सेंटीमीटर तक बारिश हुई थी और महानगर के कई इलाकों में जन जीवन बारिश के पानी से अस्त व्यस्त हो गया था। घरों में पानी घुस गया था। कई इलाके खाली करा लिए गए थे। इसी तरह वर्ष 2015 में चेन्नई में मूसलाधार बारिश से महानगर के हर इलाके बाढ की पानी में डुबे थे। तब खासकर दक्षिण चेन्नई तांब्रम, पल्लवरम, वेलचरी पेरनगुड़ी आदि इलाके के लोगों को दूसरे इलाकों में शिफ्ट किया गया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने उस बाढ़ से सबक लेते हुए महानगर के जल निकासी व्यवस्था को हाईटेक करने की बात कही थी। लेकिन सरकार और सत्ता भी बदल गई लेकिन ड्रेनेज व्यवस्था के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होती रही। ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन के मुख्य अभियंता एस राजेंद्रन कहते हैं कि चेन्नई में बेंगलुरु जैसी स्थिति पैदा नहीं होने देंगे। हमने महानगर के सभी जोनल कार्यालय में 150 से भी अधिक मोटर तैयार करके रखे हैं। यदि बाढ़ की स्थिति बनी तो शहर से जल निकासी के लिए मोटर के द्वारा पानी शहर से बाहर निकाला जाएगा। पूछने पर उन्होंने बताया कि शहर में ड्रेनेज निर्माण का कार्य कमोबेश 80 प्रतिशत पूरा हो गया है और 20 प्रतिशत कार्य आगामी अक्टूबर महीने तक पूरा कर लिया जाएगा। कोरोना महामारी के कारण अन्य राज्यों से आ रहे मजदूरों का आना कम हो गया। जिनके कारण प्रोजेक्ट पूरा करने में समय लग रहा है। जहां सौ मजदूरों की जरूरत है वहां बमुश्किल 20 से 25 मजदूर मिल रहे हैं,यही वजह है कि ठेकेदार निर्माण का कार्य समय पर पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
अधूरे ड्रेनेज सिस्टम से हो सकता है जान माल का नुकसान
बता दें कि महानगर के अस्त-व्यस्त ड्रेनेज सिस्टम के कारण अधिकांश फुटपाथ का मेनहोल खुला हुआ है। वही ड्रेनेज के निर्माण में उपयोग हो रहे लोहे के पाइप अस्त-व्यस्त अवस्था में छोड़ दिए गए हैं। उन्हें मिट्टी से ढका नहीं जा रहा है। यदि बारिश से पानी जमा होता है तो लोगों को यह पता लगाना मुश्किल हो सकता है कि आखिर वह किधर से जाएं। खासकर पैदल चलने वाले यात्रियों और वाहन चालकों के लिए मुसीबत है जो हर दिन कामकाज वास्ते बाहर निकलते हैं । पहले ही खुले मेनहोल और खुले ड्रेनेज में गिरकर कई लोगों और पशुओं ने जान गंवाई है। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह आने वाले खतरे से निबटने के लिए मुकम्मल व्यवस्था करे।