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-बृजेश विजयवर्गीय-
कोटा। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गत दिवस कूनो नेशनल पार्क में 70 सालों से विलुप्त चीता जैसे जीव के पुर्नस्थापना से प्रकृति प्रेमी संस्थाओं ने उम्मीद जताई है कि भविष्य में वन्यजीवों तथा जैव विविधता को कायम रखने वाली गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलेगा। चम्बल संसद के अध्यक्ष कुंज बिहारी नंदवाना,समन्वयक बृजेश विजयवर्गीय, जल बिरादरी के अध्यक्ष सीकेएस परमार,महासचिव डॉ अमित सिंह राठौड़ ने प्रधान मंत्री को पत्र प्रेषित कर कहा कि चीतों से प्रेम होने से बड़ा है प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता। संस्थाओं ने इसको लेकर दिल्ली में चल रहे आंदोलन को नैतिक समर्थन दिया है। प्रकृति प्रेमियों ने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षैत्र एनसीआर क्षैत्रीय योजना- 2041 के प्रारूप में राजस्थान के दो जिलों अलवर और भरतपुर के पर्यावरणीय महत्व के अरावली पर्वत क्षैत्र. की जल संरचनाओं, वन संपदा पर होने वाले कुठाराघात को रोकने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव समेत लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला व मुख्य मंत्री राजस्थान सरकार को पर्यावरण संस्थाओं ने ज्ञापन दे कर अपत्तियां जताई है तथा सकारात्मक सुझाव प्रेषित किए है।
चम्बल संसद के सभापति जीडी पटेल उपाध्यक्ष अनिता चौहान, इंटेक कंवीनर निखिलेश सेठी,तरूण भारत संघ के चमन सिंह,बाघ व चीता मित्र,कोटा एनवायरमंेटल सेनीटेशन सोसायटी के यज्ञदत्त हाड़ा,एडवोकेट प्रो.अरूण शर्मा,कल्पना शर्मा, ,विनीत महोबिया,आभा श्रीवास्तव,पीपुल्स फॉर एनीमल आदि के पदाधिकारियों ने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षैत्र एनसीआर क्षैत्रीय योजना – 2041 के प्रावधान जहां अरावली पर्वत को बर्बाद कर देंगे वहीं 4 राज्यों के 25 जिलों समेत राजस्थान के दो जिलों अलवर एवं भरतपुर में करोड़ों लोगों के जीवन की गुणवत्ता और साफ हवा और पानी के अधिकार से खिलवाड़ होगा। इस योजना के प्रारूप से ज्ञात है कि 70 प्रतिशत से अधिक अरावली और अन्य महत्वपूर्ण प्राकृतिक संरचनाऐ एवं परिस्थितिकी क्षैत्र खतरे में पड़ जाऐंगी। हाल ही में राजस्थान के कनकांचल आदि पर्वत को बचाने के लिए एक संत विजयादास जी ने आत्मदाह किया उसके बाद सरकार चेती और क्षैत्र का वन संरक्षित क्षैत्र घोषित किया और खनन कार्यों पर रोक लगी। ये प्राकृतिक संरचनाऐं ही एनसीआर में रह रहे लोगों को साफ हवा और पानी उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजस्थान सरकार को समझना पड़ेगा कि पानी की कमी राजस्थान के कई जिलों में विशेषकर अलवर एवं भरतपुर में भी है। पानी का संकट राजस्थान के 243 में से 172 ब्लॉक्स में भू जल का अतिदोहन के कारण गंभीर संकट है। ऐसी परिस्थिति में अंधाधुंध विकास से ज्यादा पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने की जरूरत है।
इस प्रारूप में प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र शब्द को हटा कर प्राकृतिक क्षैत्र से बदल दिया गया है। इससे बे रोकटोक निर्माण कार्यो का सिलसिला शुरू हो जाएगा। पर्यावरण् प्रेमियों ने सुझाव दिया कि एनसीआर क्षेत्रीय योजना 2021 में प्रयुक्त शब्द प्राकृतिक संरक्षित क्षैत्र को नई क्षैत्रीय योजना में रखा जाए। हमारा दूसरा सुझाव है कि योजना के प्र्रारूप् में उन सभी क्षैत्रों को संरक्षण दिया जाए जो कि प्राकृतिक संरक्षित क्षैत्र की मान्यता रखते थे,वह केंद्रीय या राज्य अधिनियमों के तहत अधिसूचित न हों या राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज न हो। वन क्षैत्र शब्द को न हटा कर प्रारूप-में इसे वापस शामिल किया जाए। इसी प्रकार एनसीआर के वन क्षैत्र को बढाने के लिए कुल वर्ग क्षैत्र का 10 प्रतिशत निर्धारित करना चाहिए। इस प्रारूप से जल निकायों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। जल निकायों की परिभाषा में प्रकृति द्वारा निर्मित शब्दों को हटा कर मानव निर्मित जल संरचनाओं को भी संरक्षित किया जाए। सुझाव है कि प्रारू में नदियों और उनकी सहायक नदियों और बाढ़ के मैदानों बाढ़ प्रवण क्षैत्रों के संरक्षण को वापस शामिल किया जाना चाहिए।

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