विश्व नदी दिवस: आरती में चम्बल बचाओ, कोटा बचाओ के उद्घोष लगे

छोटी समाध पर चम्बल को प्रदूषण मुक्त,शोषण मुक्त कर दुर्दशा सुधारने के संकल्प लिया गया

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-मुकेश सुमन-
कोटा। विश्व नदी दिवस पर रविवार को चम्बल नदी के किनारे रिवर फ्रंट साइट छोटी समाध रामपुरा पर चम्बल संसद के आव्हान पर नदी की आरती की गई। उससे पूर्व छोटी समाध पर चम्बल को प्रदूषण मुक्त,शोषण मुक्त कर दुर्दशा सुधारने के संकल्प लिया गया। छोटी समाध के पुजारी महंत सत्येश्वर शर्मा माईकल बाबा की अगुवाई में चम्बल बचाओ, कोटा बचाओं के उद्घोषो के साथ नदी की आरती कर नदी के पानी को स्वच्छ रखने और सदानीरा बनाने का आव्हान किया। इस अवसर चम्बल संसद के संरक्षक यज्ञदत्त हाड़ा, समन्वयक बृजेश विजयवर्गीय, महासचिव डॉ अमित सिंह राठौड़, शिक्षाविद् डॉ गोपाल धाकड़, बॉयलोजिस्ट बाघ- चीता मित्र डॉ कृष्णेंद्र सिंह, सह सचिव मुकेश सुमन,सोनू  मीणा, लीलाधर सुमन, कोटा एनवायरमेंटल सेनीटेशन सोसायटी के सदस्यगणों समेत सैकड़ों श्रद्धालु महिलाओं ने आरती में भाग लिया।

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कोटा की छोटी समाध पर चंबल की आरती में मौजूद लोग

चम्बल मैली रहेगी तो कोटा के नागरिक कैसे स्वस्थ रहेंगे

इस अवसर वक्ताओं ने कहा कि चम्बल का आज शुद्धिकरण की आवश्यकता है न कि कृत्रिम सौंदर्य की। चम्बल मैली रहेगी तो कोटा के नागरिक कैसे स्वस्थ रहेंगे। नदी हर शहर की जीवन रेखा है। इसे हर हाल में बचाना है।
डॉ अमित सिंह राठोड़ ने कहा कि भारत वर्ष में जहां भगीरथ जी के प्रयासों से गंगा जैसी पवित्र पावनी नदी बह रही हो जिसके वेग को थामने के लिए भगवान शंकर ने अपनी जटाऐं खोल कर उसमें नदी को समा लिया हो उस देश में नदियों के प्रति विश्व समुदाय ने समर्थन और संरक्षण की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।

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चम्बल संसद के पदाधिकारी नदी बचाओ का संदेश देते हुए

हम सम्मान दे कर भूल गए कि नदियां रक्तवाहिनियों की तरह है

डॉ कृष्णेंद्र सिंह ने बताया कि भारत की नदियों को जहां मां का दर्जा दिया गया है वो सम्मान कहीं नहीं है। हम सम्मान दे कर भूल गए कि नदियां रक्तवाहिनियों की तरह है जो जीवन धाराऐं कही जा सकती है। शायद इसी कारण भारत समेत हर जगह सभी सभ्यताओं का जन्म नदियों के किनारे हुआ। दुर्भाग्यवश सभ्य कहे जाने वाले समाज ने नदियों को प्रदूषण युक्त बना कर मैला ढोने वाली गाड़ी बना दिया। कोई भी सरकार नदी संरक्षण के प्रति गंभीर नही दिखती। डॉ गोपाल धाकड़ ने कहा कि नदिया अब पानी के लिए नहीं बजरी के लिए जानी जाती है। जल प्रवाह में से खनन क्षैत्र खोजा जाता है। आबादियों को बसा कर वोट बैंक की फसलें खड़ी की जा रहीं है। भारत की गंगा यमुना, चम्बल समेत बनास, मेज, पार्वती, कलीसिंध अब बारह मासी नदियां नहीं रहीं। चम्बल आदि नदियों के पानी से समृद्धता का ढोल पीटने के बाद हम संरक्षण के प्रयास न के बराबर है। हम रिवर फ्रंट बना कर नदियों के कुछ हिस्से को कृत्रिम सौंदर्य से भ्रमित करने का प्रयास कर रहे है। जबकि नदियों की बीमारी है प्रदूषण, अतिक्रमण और शोषण। उसका उपचार संरक्षण की योजनाओं को लागू कर प्रदूषण और अतिक्रमण मुक्त करने में है। यह बात उसी तरह से है जैसे हृदय रोगी को हड्डी के डाक्टर के पास जा कर ईलाज कराया जाए। नाक काट कर नथ पहनाने का काम हमारे हुक्मरान कर रहे है। शायद इसी को विकास कहते है।

जल, जंगल और जमीन पर चहुंओर से संकट

वक्ताओं ने कहा कि जल, जंगल और जमीन पर चहुंओर से संकट है। लेकिन आज विश्व समुदाय एक दिन नदियों पर बात करने का अवसर तो प्रदान करता ही है। बृजेश विजयवर्गीय ने बताया कि स्वीडन में हाल ही में सुखाड़ बाढ़ से मुक्ति की युक्ति का आव्हान हुआ है। पीपुल्स वर्ल्ड कमीशन ऑन ड्राउट एंड फ्लड के नाम से विश्व मंच बने है। कोटा को भी इस काउंसिल में प्रतिनिधित्व मिला है जो कि चम्बल के लिए श्रेष्ठ होगा।

– सह सचिव, चम्बल संसदः राष्ट्रीय जल बिरादरी,बाघ- चीता मित्र

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