kota sari

कृष्ण बलदेव हाडा
कोटा। कोटा के रामपुरा इलाके के गांधी चौक में नवनिर्मित कोटा साड़ी बाजार कॉम्पलैक्स में दुकानों के आवंटन के लिये शुक्रवार को लॉटरी निकाले जाने के साथ ही कोटा में अलग से इस लोकप्रिय साड़ी का बाजार सजने लगेगा। हाडोती अंचल के कोटा को अपनी एक अलग भौगोलिक पहचान दिलाने वाली कोटा साड़ी जिसे कोटा डोरिया व कोटा मसूरिया के नाम से भी जाना जाता है, का अब कोटा शहर में अपना यह एक अलग से बाजार होगा और इस केंद्रीयकृत व्यवस्था के कारण कोटा साड़ी की खरीद में रुचि रखने वाली महिलाओं को अपने पसंदीदा साड़ी के लिए भटकना नहीं पड़ेगा बल्कि उन्हें विभिन्न रंगों-डिजाइनों की कोटा साड़ियां एक ही कॉम्प्लेक्स की छत के नीचे उपलब्ध हो जाएगी।

साड़ी का सबसे प्रमुख केंद्र रामपुरा बाजार की प्रसिद्ध भैरु गली

अब तक शहर में कोटा साड़ी का सबसे प्रमुख केंद्र रामपुरा बाजार की प्रसिद्ध भैरु गली रही है। इस सकरी सी गली ही इस साड़ी का प्रमुख व प्रसिद्ध केन्द्र रहा है। यहां आमतौर पर केवल कोटा डोरिया साड़ी ही मिलती है क्योंकि कोटा डोरिया अब स्थानीय ही नहीं बल्कि राजस्थान के दूसरे हिस्सों सहित अन्य राज्यों की महिलाओं की भी ठीक वैसे ही पसंदीदा साड़ी बन गई है जैसे कांजीवरम, बनारसी, मैसूरी सिल्क की साड़ियां है। वर्तमान में इस गली में 48 व्यापारी कोटा डोरिया की साड़ी की दुकान-शोरूम चलाते हैं जहां खेरीज से लेकर थाेक स्तर पर इसका कारोबार होने के कारण अन्य राज्यों के साड़ी व्यवसाई थाोक में खरीददारी के लिए यहां आते हैं। हालांकि कुछ बाहरी कारोबारी अपेक्षाकृत सस्ते दामों में कोटा डोरिया साड़ी मिलने की उम्मीद में सीधे निर्माता बुनकरों से खरीददारी के लिए कोटा से करीब 15 किलोमीटर दूर कैथून नगर चले जाते हैं जो कोटा डोरिया साड़ी का प्रमुख निर्माण केंद्र होने के कारण वहां से साड़ियां बनने के बाद बिकने के लिए कोटा में भेरू गली के व्यापारियों के पास ही आती है।

बुनकरों और कारोबारियों का एक सदी से ज्यादा पुराना नाता

अगर थाेक में साड़ियों की खरीद दरों को देखे तो कोटा की भैरु गली व कैथून में मिलने वाली साड़ियों की कीमत में कोई खास अंतर नहीं होता। वैसे भी कैथून के कोटा डोरिया साड़ी के बुनकरों और कोटा में इसकी खेरीज से लेकर थोक तक में बिक्री करने वाले कारोबारियों का आपस में एक सदी से ज्यादा पुराना नाता रहा है क्योंकि सरकार ने तो कैथून के बुनकरों की आर्थिक हालत सुधारने पर अब देना ध्यान देना शुरू किया है जबकि कोटा के व्यापारी तो दशकों पहले से ही के कैथून के बुनकरों को कोटा डोरिया साड़ी को कातने में आने वाली लागत को वहन करने के लिए नकद रुपयों से लेकर कच्चा माल व अन्य संसाधन उपलब्ध करवाने में हमेशा से मदद करते रहे है। यही वजह है कि बुनकरों और व्यापारी मिलकर काम करते आए हैं। चूंकि कोटा डोरिया की साड़ी को बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के दाम काफी ज्यादा होते है इसलिए उसे खरीदने के लिए आज भी बुनकरों को आर्थिक रूप से कोटा के व्यापारियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

एक साड़ी की बुनाई में लगभग तीन सप्ताह तक का समय

अच्छी गुणवत्ता वाली जरी, सूती-रेशमी धागों की सहायता से कोटा डोरिया की साड़ी को हाथ से बुनकर बनाना इतना सहज, सरल व आसान नहीं होता है क्योंकि ऐसी एक साड़ी की बुनाई में लगभग तीन सप्ताह तक का समय लग जाता है। चूंकि कई बुनकर परिवार पीढियों से ही इस काम में लगे हैं इसलिये परिवार के सभी सदस्य सामूहिक रूप से यह काम करते हैं, जिसमें मेहनत की तुलना में मुनाफा कम होने के कारण अब बुनकरों की युवा पीढ़ी का इस कारोबार से धीरे-धीरे मोह भंग होता जा रहा है। कोटा में एक ही छत के नीचे कोटा डोरिया की साड़ी का कारोबार करने के लिए रामपुरा में पुरानी भैरु गली के पास ही गांधी चौक में नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल के प्रयासों से यह बहुमंजिला आधुनिक व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स बनाया गया है, जिसमें अलग-अलग आकार के कुल 65 शोरुम हैं जिनकी लॉटरी निकाले जाने के बाद अगले महीने व्यापारियों को आवंटन किए जाने की संभावना है। इसके भूतल में पार्किंग के अलावा प्रथम तल पर 33 व द्वितीय तल पर 32 शोरुम हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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