स्वप्न हुआ साकार

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-शैलेश पाण्डेय-

खेलों के प्रति लगाव के कारण क्रिकेट के बाद टेनिस और फुटबाल मेरे प्रिय खेल रहे। जब खेल पत्रकार बना तो विंबलडन और फ्रेंच ओपन काफी लोकप्रिय खेल थे। स्टेफी ग्राफ, मोनिका सेलेस, मार्टिना नवरातिलोवा तो आंद्रे अगासी, जिमी कोनर्स और बियोन बॉर्ग पसंदीदा खिलाड़ी थे। फ्रेंच ओपन को पहली बार टीवी पर देखा तो दीवाने हो गए। लेकिन पेरिस में जिस जगह Roland Garros par यह खेला जाता उसे हिंदी का हर पत्रकार अपने हिसाब से लिखता। मैं भी उनमें एक था। हम नाम कभी सही नहीं लिख सके। जयपुर में जब हमारे साथ काम करने आए रामेश्वर सिंह ने पहली बार यह नाम सही कराया क्योंकि उनके जैसी खेल और अंग्रेजी की समझ मुझे मिले लोगों में उनसे बेहतर किसी की नहीं मिली। आज पेरिस में Roland Garros के बारे में टूर गाइड केथरीन ने विस्तार से बताया तो पुराने दिन याद आ गए। जब एफिल टॉवर पहुंचे तो वहां ओलंपिक के प्रतीक फाइव रिंग्स देखने को मिले।

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शाम को क्रूज पर सफर के दौरान फिर एफिल टॉवर पर ओलंपिक रिंग्स चमकती नजर आई। एफिल टॉवर पर पांच मिनट के light show सेरेमनी के दौरान नजारा अद्भुत था। इसमें ओलंपिक रिंग्स अलग अलग रंग में चमक रही थीं। इस अवसर पर बेटे अजातशत्रु और पत्नी नीलम के साथ एफिल टॉवर का फोटो खिंचवाया तो करीब ढाई दशक के खेल पत्रकारिता का समय और संघर्ष चलचित्र की भांति आंखों के समक्ष घूम गया। इस अवधि के सभी साथी गजानंद शर्मा जी, पीयूष कुलश्रेष्ठ, रामेश्वर सिंह, मुकेश पाण्डेय, मृदुला और संजय सिंह की बहुत याद आई। मेरे जीवन में इन सभी का सहयोग अतुलनीय रहा है। यही सोचता रहा कि आज ये भी मेरे साथ होते तो खुशी दोगुनी हो जाती।

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