‘कोटा रिवर फ्रंट के एनीकट से डाऊन स्ट्रीम के तीनों पुलों के बहने का खतरा’

सबसे बड़ी समस्या उस एनीकट ने पैदा की है जो रिवर फ्रंट में हमेशा पानी भरने के लिए बनाया गया है। यह तीन मीटर ऊंचा है और इसकी लंबाई 245 मीटर ही है। कहने का मतलब यह है कि इस स्थान पर चम्बल नदी को 59 मीटर सिकोड़ दिया गया है। जाहिर है कि 19 गेट खुलने पर छोड़ा गया पानी 304 मीटर से निकलकर एकदम एनीकट में फसेगा तो हाइड्रोलिक जंप की स्थिति बनेगी। यानी बाढ़ ऊपर की ओर उछाल मारेगी और अगर वह पुलों की स्लैब से टकराई तो उसे बहा ले जाएगी।

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-पीडब्ल्यूडी के रिटायर्ड एसई एके जैन ने दी चेतावनी

-धीरेन्द्र राहुल-

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धीरेन्द्र राहुल

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार)

कोटा। कोटा में चम्बल नदी पर पन्द्रह सौ करोड़ की लागत से बनाए गए रिवर फ्रंट की वजह से चम्बल नदी के डाऊन स्ट्रीम में बने तीनों सड़क पुल बाढ़ आने की स्थिति में बह सकते हैं। यह चेतावनी रविवार को पीपुल्स रिसोर्स सेंटर की ओर से हरियाली रिसोर्ट में देश में बन रहे रिवर फ्रंट पर आयोजित दो दिवसीय सेमीनार में सार्वजनिक निर्माण विभाग के सेवानिवृत्त अधीक्षण अभियन्ता एके जैन ने दी।

उन्होंने कहा कि नगर विकास न्यास ने रिवर फ्रंट बनाते समय पुलों की सैफ्टी के बारे में पीडब्ल्यूडी से विचार विमर्श और सहमति लेने की कोशिश तक नहीं की।

उनका कहना था कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 10 अक्टूबर 23 को ज्वाॅयंट कमेटी गठित की थी। इसमें गुजरात इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ( जेरी ) की 3 डी कम्पोजिट मोडल स्टडी रिपोर्ट के अनुसार कोटा बैराज 551.68 मीटर लंबा है। इसमें 246.88 मीटर मिट्टी का बांध है जबकि 304.88 कंक्रीट से बना पक्का डैम है। इसमें 19 गेट हैं। बाढ़ आने पर जब इन्हें खोला जाता है तो 8.81लाख क्यूसैक्स पानी का डिस्चार्ज बैराज से होता है।

जैन का कहना था कि सबसे बड़ी समस्या उस एनीकट ने पैदा की है जो रिवर फ्रंट में हमेशा पानी भरने के लिए बनाया गया है। यह तीन मीटर ऊंचा है और इसकी लंबाई 245 मीटर ही है। कहने का मतलब यह है कि इस स्थान पर चम्बल नदी को 59 मीटर सिकोड़ दिया गया है। जाहिर है कि 19 गेट खुलने पर छोड़ा गया पानी 304 मीटर से निकलकर एकदम एनीकट में फसेगा तो हाइड्रोलिक जंप की स्थिति बनेगी। यानी बाढ़ ऊपर की ओर उछाल मारेगी और अगर वह पुलों की स्लैब से टकराई तो उसे बहा ले जाएगी।

उनका कहना था कि पुलों के ऊपर की स्लैब गर्मी से फैलती और ठंड से सिकुड़ती है, इसलिए उसे बियरिंग पर ही रखना पड़ता है। ये बियरिंग लोहे के बने होते हैं जो पानी के संपर्क में आने से जंग लगने से जाम हो सकते हैं और बाढ़ का पानी स्लैब से टकराए तो वह बह भी सकते हैं। क्योंकि वह नीचे वाले खंबों से बंधे नहीं होते, सिर्फ रखे होते हैं। उनका कहना था कि राज्य सरकार को सबसे पहला काम तो इन पुलों की सैफ्टी ऑडिट करवानी चाहिए। साथ ही यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि साल में दो बार पुलों के बियरिंग की ग्रीसिंग कैसे की जा रही है?

सेमीनार के संयोजक इंजीनियर रवि जैन का कहना था कि कोटा बैराज का अर्दन डैम वाला हिस्सा ( मिट्टी ) वाला बांध में सीपेज होना जरूरी है, इससे बांध का दबाव रिलीज होता रहता है लेकिन उसे नापने वाले पीजो मीटर और फिल्टर ( गिट्टी से बनाई गई संरचना ) जिससे पानी का निकास आसानी से होता रहता है। ये दोनों बन्द पड़े हैं। इसलिए पानी कहां से रम रहा या निकल रहा है। यह पता नहीं चल पा रहा है। यह खतरनाक स्थिति है और कभी भी मिट्टी का बांध बह सकता है। इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। सेमीनार में देश के 32 से भी अधिक विशेषज्ञों ने भाग लिया।

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