वाइल्ड लाइफ को प्रभावित करने वाला खनन ‘कैंसर’ समान

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गोडावण का फोटोः एएच जैदी

-पर्यटकों के लिए जंगल सफारी उचित
-विदेश से लाकर चीते बसाना सही कदम

-ए एच जैदी-

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ए एच जैदी

(नेचर प्रमोटर)

कोटा। बाॅम्बे हिस्ट्री नेचुरलिस्ट्स सोसायटी के पूर्व निदेशक डाॅ असद रहमानी का मानना है कि हाडोती के बारां जिले का सोरसन विलुप्त होने पर कगार पर खडे गोडावण का प्राकृतिक आवास है और यदि इस पक्षी को बचाना है तो यहां इसे बसाना ही होगा। उनका कहना था कि मैंने यहां एक 40 गोडावण तक देखे हैं और दस साल बाद यहां आया तो एक भी गोडावण नहीं मिला। ‘कैंसर’

कोटा की कला दीर्धा में उन्होंने पत्रकारों और पर्यावरण से जुडे संगठनों के एक्टिविस्टों से व्यापक चर्चा की। उनका कहना था कि गोडावण का यहां हर हाल में पुनर्वास होना चाहिए ओर सोसायटी केन्द्र और राज्य सरकार को अपनी सिफारिशें भेजेगी।

उन्होंने जंगल और वाइल्ड लाइफ को प्रभावित करने वाले खनन को ‘कैंसर’ के समान बताते हुए कहा कि हर हाल में इस समस्या से निजात पाना जरूरी है अन्यथा आने वाले समय में पर्यावरण बुरी तरह दूषित होगा। उन्होंने रणथंभोर जैसे सभी टाइगर रिजर्व में पर्यटकों के लिए खोले जाने की वकालत की।

उनका कहना था कि एक समय रणथंभोर में गिनती के बाघ बचे थे आज भले ही ये पालतु पशु जैसे हो गए लेकिन कम से कम पर्यटकों की वजह से बचे हुए तो हैं। इनकी संख्या में निरंतर इजाफा होना अच्छा संकेत है। उन्होंने अफ्रीका से चीते लाकर मध्य प्रदेश के कूनो में बसाए जाने का भी स्वागत किया। उन्होंने कहा कि एक समय चीता भारत में बहुतायत में था। इसलिए बाहर से चीते लाए जाने में कोई बुराई नहीं है। कम से कम इसी तरह यह वन्य जीव हमारे यहां रहेगा और पर्यावरण में मदद मिलेगी।

डाॅ रहमानी ने हेचरी स्थापित कर गोडावन के प्रजनन की प्रकिया को सही बताया। उन्होंने कहा कि इसकी व्यापक योजना है और वैज्ञानिक तरीके से प्रजनन कराया जाएग। इनसे तैयार हुए गोडावन को तो प्रजनन स्थल पर ही रखा जाएगा लेकिन जब उनके बच्चे तैयार होंगे हम उन्हें प्राकृतिक आवास में छोडेंगे। उन्होंने दुनिया भर में पक्षियों की तेजी से घटती संख्या पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि यह पर्यावरण के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।

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सारसः फोटो ए एच जैदी

डाॅ असद रहमानी ने कहा कि पक्षियों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। मुझे यहां बताया गया कि सारस अच्छी स्थिति में थे लेकिन उनके आवास पर तो आघात पहुंचा है इसके लिए यहां आवारा कुत्तों की भी समस्या है। उन्होंने कहा कि सारस बडा पक्षी है और एक दो कुत्तों को तो भगा सकता है लेकिन यदि झुण्ड ही हमला कर दे तो वह कुछ नहीं कर सकता। हाईटेंशन लाइन भी इनकी मौत का बडा कारण है। सारस अपने आकार प्रकार और आंखों की स्थिति में अगल-बगल तो देख सकता है लेकिन सामने नहीं देख पाता। यही वजह है कि वह हाई टेंशन लाइन की चपेट में आकर मरने वाले पक्षियों में शुमार है।

उल्लेखनीय है कि बाॅम्बे हिस्टी सोसायटी के विशेषज्ञों की टीम ने बारां जिले के संरक्षित वन क्षेत्र सोरसन के अमलसरा, नियाणा के जंगलों का दौरा किया। इस दौरे के दौरान वहां के तालाबों, पक्षियों, वन्य जीवों की गतिविधियों का अध्ययन किया। यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी सिफारिशों को राज्य और केन्द्र सरकार मानेगी, डाॅ रहमानी ने कहा कि हम वैज्ञानिक अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट देते हैं। इनको मानना या इसे लागू करना सरकारों पर निर्भर है। हम कोई विधी द्वारा स्थापित संगठन नहीं है।

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