-डॉ अनिता वर्मा-

स्वीकारना
स्वीकारना किसी को
मन की गहराईयों से आसान नहीं है
बहुत कुछ मुक्त होना पड़ता है
अपने भीतरी अन्तर्द्वन्द्व से ,
रागद्वेष से परे होकर ,
अहं का विगलन जरूरी है
किसी को स्वीकारने के लिए ,
‘ मैं ‘से ‘हम ‘हो जाना
ले जाता है एक नवीन पथ पर;
जहाँ कुछ शेष नहीं रह जाता ;
स्वीकार करना किसी को
आसान तो नहीं पर ,,,,,!
बहुत कुछ समाहित है
आत्म स्वीकृति में ,
हो जाता है एक क्षण में
तनाव रहित मन ,
अपेक्षा का भाव परिवर्तित हो ,
बन जाता है स्वीकृति
तब छंट जाते हैं निराशा के बादल ;
ग्रंथियाँ खुलती जाती हैं ,
बनने लगते हैं सम्भावनाओं के पुल
खिलखिला उठती हैं कलियाँ
अन्तर मन की ,,,,,,,!
एक दूसरे तक पहुँचने लगते हैं
हमारे भाव तीव्र गति से
समभाव के साथ पनपने
लगते हैं सद् विचार ,
महकने लगता है मन उपवन
स्वीकारने लगते हैं जब हम
सोच- विचार, चिंतन
एक दूसरे का
होने लग जाती है, आनंद वृष्टि
अंत: स्थल में
स्वीकारने लगते हैं जब हम
एक दूसरे को,,,,,,,,,,,,!!!!!
++++++++++++++++++++
डॉ अनिता वर्मा
संस्कृति विकास कॉलोनी -3
कोटा जंक्शन 324002