बेसहारा को सहारा…

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-अखिलेश कुमार-

akhilesh kumar
अखिलेश कुमार

(फोटो जर्नलिस्ट)

कोटा के सीएडी चौराहे के पास महंत पवनपुरी अपने एक हाथी और एक मादा ऊंट के साथ डेरा डाले हुए थे। दो वर्ष पूर्व कोविड के दौरान लॉकडॉउन के चलते जब लोगों का बाहर निकलना बंद था और सरकार की ओर से मांगलिक समारोह पर प्रतिबंध थे तो ऊंट मालिक को अपने पशुओं को पालना मुश्किल हो गया! चेले भी भाग गए। उन्होंने ने भी अन्यत्र जाने की राह पकड़ी। ट्रक मंगवा कर हाथी और ऊंट का लादान करने लगे! …हाथी तो ट्रक में चढ़ गया लेकिन ऊंटनी अड़ गई। लोगों ने जबरन चढ़ाने का प्रयास किया तो ऊंटनी ने दो लोगों को उठा कर फेंक दिया! महंत जी के हौंसले पस्त हो गए। उन्होंने पास ही की बस्ती में रहने वाले श्रमिक रमेश को यह कहकर अपनी ऊंटनी सम्हलाया की आठ दस दिन बाद आकर ऊंटनी ले जाएंगे।

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रमेश ने जनसहयोग से चारा पानी की व्यवस्था कर ऊंटनी की देखभाल शुरू की और महंत जी का इंतजार करने लगा। अब दो साल होने को आए और महंत जी अबतक नही आए। बीच बीच में महंत जी रमेश को फोन करके आठ दस दिन में आने का दिलासा देते रहते है। इस दौरान शहर के समाज सेवी ऊंटनी के चारा पानी की व्यवस्था करते रहते हैं और ऊंटनी भी बस्ती के लोगों के बीच मस्त है।

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