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दुकान संचालित करती लक्ष्मी रामावत।

-सावन कुमार टॉक-

कोटा। एक समय आर्थिक तंगी से जुझ रहीं लक्ष्मी समावत ने महिला उत्थान को लेकर समाज में मिसाल पेश की और आज उनके संपर्क की 2500 में से कोई भी महिला आर्थिक स्थिति के चलते परेशान नहीं होती। लक्ष्मी बताती हैं कि शादी के तीन माह बा

सावन कुमार टॉक

द ही उनके बेटे की मृत्यु हो गई। पुत्रवधू अनुराधा को दूसरी शादी के लिए कहा तो उसने मना कर दिया। समाज के लोगों की मनाही के बाद भी एक कठोर निर्णय लेकर व पुत्रवधु के जीवन को संवारने के लिए एक वर्ष बाद पास ही के गांव झालामंड में लड़का देख उसकी शादी करवाई व समाज में महिला उत्थान का संदेश दिया। अनुराधा के एक पुत्री है। एक लक्ष्मी समावत ने महिला उत्थान को लेकर भी समाज में मिसाल पेश की है।

जीवन संघर्ष से भरा रहा

लक्ष्मी का जीवन संघर्ष से भरा रहा। एक समय था जब जोधपुर जिले के खवासपुरा निवासी लक्ष्मी रामावत को हर दिन आंख खुलने के साथ ही यह चिंता सताने लगती थी कि बच्चों को सुबह व शाम की रोटी कैसे खिलाए। जो बचत पूंजी बची थी वह थी 125 रूपए। ऐसे में पति का इलाज व घर खर्च चलाना आसान काम नहीं था। ऐसे में पड़ोस में रहने वाली वृद्धा ने लक्ष्मी को हौसला बंधाया और जो कारोबार 125 रूपए से शुरू हुआ वो आज 2500 महिलाओं को रोजगार दे रहा है। लक्ष्मी के बनाए खीचले, पापड़ व आचार देश ही नहीं विदेशों में भी अपने स्वाद के चलते मंगाए जाते हैं।

कोटा में भी अपने हाथ का स्वाद

लक्ष्मी कोटा में भी महिला बाल विकास विभाग के आयोजन के दौरान अपने हाथ का स्वाद चखा चुकी है। लक्ष्मी की कहानी महिलाओं में रोजगार को लेकर जोश भरने वाली है। लक्ष्मी बताती है कि वर्ष 1998 में उनके पति बाबूलाल दुर्घटना में घायल होकर कोमा में थे, घर में कोई कमाने वाला नहीं था। जो पैसे जमा किए हुए थे वो पति के उपचार में धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे थे। एक समय ऐसा आया कि केवल 125 रूपए ही बचे तब पास ही रहने वाली एक महिला ने खीचले बनाने का काम शुरू करने को कहा। पहले दिन 2 किलो के खीचले विके तो फिर 5 किलों के बनाएं जायके व स्वाद के कारण लोगों ने खूब पसंद किया।

– समूह बना तो आज 2500 महिलाएं कर रही काम

1998 में ही महावीर विकलांग स्वयं सहायता समूह से लक्ष्मी जुड़ी जहां 50 हजार रुपए का लोन दिलवाया। फिर महिलाओं के समूह के साथ खीचले, पापड, मुंगेले, राबोडी, आम पापड, ग्राम आचार सहित गर्म कपड़ों के जूते, बैग, बन्दनवार, झालर, पर्स सजावटी सामान बनाने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो लगातार चल रहा है। आज उनके साथ 2500 महिलाएं इस रोजगार से जुड़ी हुई है। वह पहले मेले में वर्ष 2002 में गई थी। इसके बाद परिवार की आर्थिक स्थिति में तो सुधार हुआ हो महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने की सन्तुष्टि भी मिली। लघु उद्योग भारती जोधपुर की मंजू सारस्वत ने काफी मदद की खीचले का आटा सुबह 4 बजे तैयार कर महिलाओं को
भिजवाया जाता है। पहले बेटा काम करता था। 2017 में उसको मौत हो गई तब से दो कर्मचारी लगाए हुए हैं। पोते नर्सिंग, इंजिनियरिंग कर रहे है तो अब में काम करने से मना भी करते हैं। लेकिन में शुरू से ही जब तक हाथ पर तब तक काम करती रहूंगी।

— और भी कई उत्पाद बनाती है महिलाएं

महिलाओं के समूह से जुड़ी हुई 2500 महिलाएं खीचले, पापड, आचार, गर्म कपड़ों के जूते, बंन्यार झालर, पर्स बनाने का काम करती है। चपड़ मे, पालक, सूजी, चावल आम, मसाले व आटे के बनते हैं। सारे खाद्य पदार्थ सांझी से बने हुए होते है जिस कारण कीमत बाजार से थोड़ी अधिक देती है। 1200 किलो मिलती है जिसे कूटकर उबालना पड़ता फिर 3 दिन तक रखने के बाद ओसन लोई तैयार होती है। मुख्य बात यह कि सांझी बीकानेर व प्रतापगढ़ में ही मिलती है।

– ऑनलाइन भी जा रहे खीचले

मेले के दौरान ही लक्ष्मी को एक खरीदार ने अनलाइन भी सामान भेजने के बारे में कहा व समझया उसके बाद जहां से भी आर्डर मिलता है ऑनलाइन सप्लाई भिजवा दी जाती है। अपने स्वाद कारण देश ही नहीं विदेशों में भी खीचले, पापड व आचार की मांग है। अमेरिका सहित कई देशों में निर्यात किया जा चुका है।

– समूह बना मददगार

लक्ष्मी बताती है कि समूह के काम में जो बचत होती है उसे बैंक में जमा किया जाता है। जब किस महिला को परिवार में शादी समारोह, बीमारी, निर्माण या अन्य कार्य के लिए जब कभी पैसों की जरूरत होती है एक रूपए ब्याज दर पर सदस्य को उपलब्ध करवा दिया जाता है। जो वापस आने पर सभी में वितरित हो जाता है।

(लेखक सावन कुमार टॉक प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में रिपोर्टर रहे हैं)

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