‘दिल हूम-हूम करे’

800px bhupen hazarika 2013 stamp of india
photo courtesy India Post

एक वक्त जब पूर्वोत्तर , हिंसा की आग में बुरी तरह जल रहा था, तब भूपेन हजारिका ने वहां अपने गीतों के माध्यम से शांति लाने का प्रयास किया। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। लेखन, पत्रकारिता,अभिनय,संपादन, गायन, दिग्दर्शन, राजनीति इत्यादि के माध्यम से पूर्वोत्तर की संस्कृति को देश-दुनिया के पटल पर लाने में भूपेन हजारिका का महत्वपूर्ण योगदान है।

-प्रतिभा नैथानी-

प्रतिभा नैथानी

असम में तिनसुकिया के पास एक गांव है सदिया । 8 सितंबर 1926 को अध्यापक नीलकांत के घर में एक बच्चे का जन्म हुआ। नाम रखा गया- गांगोर मोयना। किसी पारंपरिक उत्सव के दौरान एक दिन वह बच्चा खो गया। मां की गोद से दूर हुए दुधमुंहे बच्चे की हर तरफ ख़ोज हुई, लेकिन वह न मिला। सुबह होने पर कुछ आदिवासी स्त्रियां उसे लेकर आईं। उनकी गोद में अपने बच्चे को हंसते-खेलते देखकर मां आश्चर्य से भर उठी। इसे कहां लेकर चले गए थे तुम लोग? और क्या यह मेरे बिना रोया नहीं ?
‘नहीं, रात में जब भी इसे भूख लगती, चुप करने को हम बारी-बारी से अपना दूध पिलाते और गीत सुनाते रहे’। गांगोर की मां खुद भी एक अच्छी लोकगायिका थीं। इस तरह दूध में ही लोकगीतों की घुट्टी पी-पीकर वह बड़ा हुआ तो कोलंबिया यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि धारण करने के बाद दुनिया के सामने आया डा.भूपेन हजारिका बनकर।
हालांकि यह सब इतना आसान नहीं था । गांगोर को भूपेन हजारिका बनने में बहुत संघर्ष का सामना करना पड़ा। हिंदी फिल्मों में काम मिलना बहुत आसान न था । तब क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों में ही उन्हें अपने जीवन का बहुमूल्य समय और प्रतिभा का उपयोग करना पड़ा। 1971 में फिल्म आरोप में ‘नैनों में दर्पण है, दर्पण में कोई ‘ गीत के बाद जरूर उन्हें मुंबई में मौके मिलने लगे।

एक समय था जब दूरदर्शन पर रात नौ बजे धारावाहिक प्रसारित किए जाते थे। यह शायद शनिवार का दिन होता था जब ‘लोहित किनारे’ में भूपेन हजारिका की आवाज़ में कोई एक गीत बजा करता था । संभवत यह ‘ओ गंगा बहती हो क्यों’ था। इस गीत की तो जैसे धूम मच गई। भूपेन हजारिका का नाम एक नई चमक के साथ उभरा। जाने कितनी भाषाओं में यह गीत अनूदित हुआ। क्योंकि भूपेन के स्टेज शो तो लगातार होते ही रहते थे, अब यह गीत उनके प्रत्येक शो का एक अनिवार्य हिस्सा हो गया। उसके बाद ‘दरमियां’ फिल्म आई। दरमियां के बाद ‘रूदाली’ और ‘दमन’ । इन सबसे पहले भी एक फिल्म आ चुकी थी ‘एक पल’ । निर्देशिका कल्पना लाजमी की इन सभी फिल्मों का संगीत दिया था भूपेन हजारिका ने।

रुदाली फिल्म में यूं तो सभी गीत एक से बढ़कर एक हैं, लेकिन ‘दिल हूम-हूम करे’ ने जो रिकॉर्ड तोड़ सफलता पाई, वह अब तक बरकरार है। फिल्म में यह गीत लता जी की आवाज़ में भी है , मगर भूपेन को सुनने के बाद लगता है जैसे गीत की आत्मा तो इसी ‘सुधा कोंथो’ में बसी है।
इस गीत में हूम-हूम शब्द के प्रयोग के बारे में लोगों ने कहा कि गुलजार अभिनव प्रयोग करते हैं। लेकिन वास्तव में देखा जाए तो यह गीत बहुत पहले भूपेन हजारिका ने अपनी किसी असमिया फिल्म में भी गाया हुआ है। तब वह क्षेत्र तक ही सीमित रह गया। रुदाली के बाद इसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। इसी तरह ‘ओ गंगा बहती हो क्यों’ की धुन भी किसी असमिया फिल्म में पहले प्रयुक्त हुई है। ‘लोहित किनारे’ के बाद यह जन-जन के कंठ में बस गया। करोड़ों लोगों के लिए आज़ भी हजारिका का अर्थ है ‘दिल हूम-हूम करे’ और ‘ओ गंगा बहती है क्यों’ !

एक वक्त जब पूर्वोत्तर , हिंसा की आग में बुरी तरह जल रहा था, तब भूपेन हजारिका ने वहां अपने गीतों के माध्यम से शांति लाने का प्रयास किया। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। लेखन, पत्रकारिता,अभिनय,संपादन, गायन, दिग्दर्शन, राजनीति इत्यादि के माध्यम से पूर्वोत्तर की संस्कृति को देश-दुनिया के पटल पर लाने में भूपेन हजारिका का महत्वपूर्ण योगदान है।
लोगों ने भी भूपेन हजारिका को बहुत सम्मान दिया । असम रत्न पुरस्कार के अलावा भी जाने कितने पुरस्कारों से उनका घर भरा हुआ था । हिंदी फिल्मों में बेहतरीन संगीत योगदान के लिए भूपेन हजारिका को दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला, भारत का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ और पद्म विभूषण भी।

आज़ ही के दिन हिंदी फिल्म संगीत की एक और महान हस्ती आशा भोंसले का भी जन्मदिन होता है। शायद इसी कारण हजारिका की स्मृतियां दूसरे पायदान पर खिसक जाती हैं। मगर पूर्वोत्तर वालों के लिए तो संगीत का आदि भी वही हैं और अंत भी । असमिया लोक गंधर्व भूपेन हजारिका के जन्मदिन पर उन्हें श्रद्धांजलि।

 

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments