
-बीके प्रभा मिश्रा-
जब कोई मुसीबत सामने आती है तो हम कहते हैं “देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान” – संसार की हालत के जिम्मेवार भगवान नही बल्कि हम स्वयं है। भगवान ने तो हमें सर्वगुण संपन्न 16 कला संपूर्ण बनाकर इस धरा पर भेजा था। लेकिन धीरे-धीरे हम मैं स्वार्थपप्ता क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ने प्रवेश कर लिया और हम मानवता को छोड़कर दानव बनते गए।
जहां हमें महामानव बनना था वहां सिर्फ और सिर्फ हममें ईगो, अभिमान, दिखावे का जीवन जीने की दक्षता आ गई हम, अपनी संस्कृति, संस्कार, शिक्षा, दीक्षा के बस एक सिंबल ऑफ स्टेटस के रूप में बना दिया। दया, करुणा, क्षमा, प्रेम हमसे दूर होते गए जो हमारे मौलिक गुण थे। आज अगर किसी का एक्सीडेंट होता है तो हम तुरंत उसका वीडियो बनाने लग जाते हैं, ताकि चैनल पर हमारा नाम हो, जबकि मानवता यह कहती है कि हमें पुलिस एंबुलेंस और उसके परिवार वालों को इतला देना होता है। कहां मर गई संवेदनाएं, भावनाएं, अपनापन, विश्वबंधुतव की भावनाएं। हमारी तो संस्कृति कहती है कि वासुदेव कुटुंबकम – पूरा विश्व हमारा है, हम विश्व के हैं पर आज तो अपने भी अपने होकर नहीं रह रहे। सुख में 10 बुलाओ 100 लोग आ जाएंगे। वही दुख परेशानी विपदा आ जाए तो अपने ही हमसे कन्नी काटने लगते हैं – कारण आज मात-पिता में ही वो संस्कार नहीं है जो आपस में जोड़ कर रखते नही हैं तो बच्चों में कहां से आएंगे।
मां बाप कहते हैं ऊंचे स्कूल में एडमिशन करवाया है पर एक टीचर कितने बच्चों को पढ़ाएगा या उसके संस्कारों की देखरेख करेगा। ये तो जन्म देने वाले माता-पिता की जिम्मेदारी होती है लेकिन पैसे कमाने के चक्कर में मां-बाप दोनों घर से बाहर होते हैं। जब बच्चा स्कूल से लौटता है तो उसे मां बाप का प्यार दुलार और संस्कारों की जरूरत होती है। पर घर सुना होता है तो आया थोड़ी संस्कार देंगी वो तो अपने घर चलने चलाने के लिए नौकरी कर रही है। बच्चे के पास बस एक ही विकल्प बचता है और वो है टीवी और टीवी पर भी उसे मारधाड़ वाली और अश्लील फिल्म देखने की लत पड़ जाती है। बाल मन अंदर दिन भर वो नकारात्मक बातें जा रही हैं जो उसके संस्कारों को प्रभावित कर रही होती हैं। उसके मन में अपने माता पिता के लिए एक घृणा भाव भर जाता है वो बोल भी नहीं पता उनके समझने पर छोटी-छोटी बातों में चिड़चिड़ा हो जाता है, झगड़ा करने लगता है और गलत संगत और नशे का आदी हो जाता है। दोष किसका, मां-बाप का जिन्होंने सोचा ऊंची स्कूल कॉलेज में पढ़ाएंगे, विदेश भेजेंगे, हमारा नाम रोशन होगा पर पैसे से आप डिग्री खरीद सकते हो divinity दिव्यता या अच्छे संस्कार नहीं।
बच्चे से कहते हैं आज तू हमको जवाब दे रहा है।
हमने तुझे पाल पोसकर बड़ा किया इतनी अच्छी शिक्षा दी, बच्चा कहता है कोई उपकार नहीं किया। पैदा किया है तो पालना तो पड़ेगा पर जब मुझे आपकी आपके प्यार-दुलार-स्नेह, अच्छी संगत की जरूरत थी तब आप कहां थे! आप ने ही पाला ये कह कर मेरे ऊपर उपकार मत जताओ। कुत्ते, बिल्ली जानवर भी अपने बच्चों को पाल लेते हैं। मगर भगवान ने तो आपको बुद्धि -विवेक दिया था तब आपने क्यों नहीं वो संस्कृति, शिक्षा का संस्कार का पाठ पढ़ाया, हमेशा कहते रहे दादा दादी से दूर रहो। वो अनपढ़ है गंवार हैं – उनके प्रति भी बचपन से हमारे मन में नफरत घृणा भरी।
बड़े बुजुर्ग भले ही अब कमाते ना हो पर और उनमें संस्कृति है। भले वो पेड़ फल नहीं देता पर ठंडी छांव सही संस्कार तो दे सकता था और अब जो आपके उनके साथ किया वही बच्चा आपके साथ करेगा। बुढ़ापे में आपको अकेला छोड़कर विदेश में जाकर किसी मेमसाब से शादी करके हमेशा के लिए वही बस जाएगा। अब सोचो दोष किसका? उन ननिहालो को आपकी केयर शेयर इंस्पायरर करने की जब जरूरत थी तो आप उपलब्ध नहीं थे। अब आपकी उनको जरूरत है वह आपके लिए उपलब्ध नहीं। जो बोयेगे वही तो काटेगे – जैसी करनी वैसी भरनी। अब समय है भौतिकता की अंधी दौड़ में, पाश्चात्य संस्कृति की नकल करने की दौड़ में आपने अपने बच्चे को बस एक मशीन जो भावनाओं से शून्य है वह बना दिया है।
अब भी समय है कुछ समय आध्यामिकता के लिए निकालें जो हमारी विरासत है, गुरुकुल बच्चा पढ़ने जाता था तो एक सुशिक्षित, संस्कारवान, मूल्यवान व्यक्तित्व का धनी बनकर निकलता था, आज वो परंपरा को तो हमने भुला दिया। कहते हैं गांधी, टैगोर तिलक, विवेकानंद अब पैदा नहीं होते, कारण उन्हें जो बचपन से आध्यात्मिकता की निस्वार्थ भाव व प्रेम की घुट्टी पिलाई गई थी। आज वह हम अपने बच्चों को कहा दे पा रहे हैं। जब जागो तब सवेरा। सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते।
अभी भी जाग जाइए, देर हुई है बहुत देर टूलेट नहीं हुआ। अभी जाग जाइए अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ सब अच्छे संस्कार दें, वही आपकी सच्ची कमाई है। घर के बड़ों की इज्जत करिए बच्चा आपकी इज्जत करेगा। फिर मत कहना हमने तो यह बात सोची नहीं थी। जागो जागो भारतवासी जागो।
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