कोटा संभाग में अनावृष्टि से सूखे के हालात, किसान आंदोलन की राह पर

-कोटा संभाग के किसान अतिवृष्टि और अनावृष्टि दोनों ही दंश झेल रहे है। अच्छे मानसून की उम्मीद में इस साल कोटा संभाग के किसानों ने खरीफ के कृषि सत्र में जमकर फसलों की बुवाई की थी। शुरुआती दौर में वर्षा भी उम्मीदों के अनुरूप हुई लेकिन बाद में पहले तो अतिवृष्टि और अब बीते करीब एक माह से अनावृष्टि के हालात बनने के कारण लगभग सभी गैर नहरी सिंचित क्षेत्र में फसलों को भारी नुकसान पहुंचने की आशंका उत्पन्न हो गई है। पर्याप्त पानी नहीं मिल पाने के कारण कुछ इलाकों में तो किसानों ने अपनी धान की फसल को हांक कर उसके स्थान पर अब रबी की नई फसल की बुवाई की तैयारी भी शामिल कर दी है।

farming
खेत तैयार करते किसान। फाइल फोटो
कोटा शहर में भी बारिश नहीं होने के कारण प्राचीन धार्मिक परंपराओं के अनुसार गढे़ भैरु जी निकालकर उन्हें फिराने और पूजा-अर्चना करने का मसला उठाया गया है। जब कभी भी कोटा में अनावृष्टि जैसे हालात बनते हैं तो कोटा नगर निगम की ओर से गढे़ भैरु जी को निकाल कर पूजा-अर्चना के बाद घुमाने की पुरानी रियासतकालीन परम्परा रही है।

-कृष्ण बलदेव हाडा-

kbs hada
कृष्ण बलदेव हाडा

कोटा। राजस्थान कोटा संभाग में अच्छे मानसून की भविष्यवाणी के बाद मानसून की अच्छी शुरुआत से इस साल खरीफ के मौसम में अच्छी फसलों की उम्मीद जागी थी लेकिन पहले संभाग के कई इलाकों में अतिवृष्टि और अब लगभग पूरे संभाग में अनावृष्टि के हालातों ने किसानों की उम्मीदों को फसलों की तरह ही मुर्झा दिया है।
कोटा संभाग के चारों जिलों कोटा,बारां, बूंदी एवं झालावाड़ के ज्यादातर क्षेत्रों में पिछले करीब एक माह से बरसात का दौर लगभग थम जाने के कारण अधिकांश स्थानों पर खरीफ की फसलें सोयाबीन, मक्का, धान, उड़द आदि को बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है। गैर नहरी सिंचित क्षेत्र में जिन किसानों के पास ट्यूबवेल जैसे अपने निजी जल स्त्रोत हैं, यह तो कुछ हद तक अपनी अपनी फसलों के लिए पानी का प्रबंध कर पा रहे हैं, लेकिन बारानी जमीन के किसानों के लिए हालात अत्यंत विकट है। वैसे भी भूमिगत जल स्तर के काफी गहरे चले जाने के कारण जिन स्थानों पर ट्यूबवेल है, वहां भी पूरी क्षमता और आवश्यकता के अनुरूप किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं। बरसात का दौर थमने के कारण भूमिगत जल स्तर भी लगातार गहराता चला जा रहा है।
कोटा संभाग में कोटा बैराज की दांई और बांई मुख्य नहर से सिंचित होने वाले क्षेत्रों में से बांई मुख्य नहर से कई इलाकों में किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पाने के कारण वहां आंदोलन जैसे हालात बन गए हैं। दांई मुख्य नहर से सिंचित होने वाले कोटा जिले के बड़े भूभाग सहित बारां जिले के कुछ हिस्से में तो नहर के लगभग पूरी क्षमता से चलने के कारण किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिल पा रहा है लेकिन बांई मुख्य नहर से सिंचित होने वाले बूंदी जिले में बहुत सा ऐसा इलाका है जहां किसानों को नहरी पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है जिसके कारण किसानों को अपनी फसलों के चौपट होने की आशंका है और उन्होंने इस मसले को लेकर आंदोलन की राह पकड़ने का फैसला किया है।
किसानों का चेतावनी दी है कि यदि नहरी सिंचित क्षेत्र में किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं करवाया गया तो किसान रास्ता रोक लेंगे और उपखंड, तहसील मुख्यालयों पर प्रदर्शन करेंगे। किसानों ने 3 सितंबर के बाद आंदोलन की राह पकड़ने का फैसला किया है, तब तक प्रशासन को सिंचाई के पानी की व्यवस्था करने का अल्टीमेटम दिया है।
राजस्थान के कोटा संभाग में अधिकांश किसान पानी की उपलब्धता के अनुसार ही फसलों की बुवाई करते हैं। संभाग में चार फसलों की बुवाई प्रमुखता से होती है जिनमें सोयाबीन, मक्का,धान, उड़द सेशामिल है। शेष फसलों का रकबा काफी कम रहता है जिसमें ज्वार, बाजरा, मूंगफली, तिल, मोठ और चवला हैं।
कोटा संभाग में खरीफ के सत्र में सर्वाधिक फसल सोयाबीन की ही होती है। इस बार भी सात लाख से ज्यादा हेक्टेयर में सोयाबीन की फसल है। यह करीब कुल बुवाई के 60 फीसदी के आसपास है। इसके अलावा वर्तमान में उड़द की बुवाई एक लाख 10 हजार 356 हेक्टेयर में हुई है, जबकि इसका लक्ष्य दो लाख 52 हजार हेक्टेयर था। यह लक्ष्य से करीब 44 फीसदी कम है। बीते साल एक लाख 38 हजार 44 हेक्टेयर में उड़द की बुवाई हुई थी। दूसरी तरफ बीते साल सात लाख 67 हजार 807 हेक्टेयर में सोयाबीन की बुवाई हुई थी। इस बार का लक्ष्य भी सात लाख 67 हजार हेक्टेयर था, लेकिन बुवाई सात लाख 12 हजार 266 हेक्टेयर में ही हुई है।
उधर कोटा शहर में भी बारिश नहीं होने के कारण प्राचीन धार्मिक परंपराओं के अनुसार गढे़ भैरु जी निकालकर उन्हें फिराने और पूजा-अर्चना करने का मसला उठाया गया है। जब कभी भी कोटा में अनावृष्टि जैसे हालात बनते हैं तो कोटा नगर निगम की ओर से गढे़ भैरु जी को निकाल कर पूजा-अर्चना के बाद घुमाने की पुरानी रियासतकालीन परम्परा रही है। पाटनपोल में गढे़ भैरु जी के स्थान से इन्हें निकाला जाता रहा है लेकिन इस बार बारिश नहीं होने के बावजूद अभी तक ऐसा कोई प्रयास नहीं किए जाने के कारण एक पूर्व पार्षद ने कोटा नगर निगम (दक्षिण) के महापौर और आयुक्त को चेतावनी दी है कि यदि निगम के स्तर पर पाटनपोल गढे़ भैरु जी को निकाल कर पूजा-अर्चना नहीं की गई तो वे खुद अपने स्तर पर गढे़ भैरु जी निकालकर रियासतकालीन परंपरा का निर्वहन करते हुए। बरसात की कामना करेंगे।

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments