गुंजल ने कोटा दशहरा मेला के अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ने का अंदेशा जताया

चाटुकारिता व आपसी खींचतान के चलते प्रतिवर्ष कई बड़े-बड़े कार्यक्रमों को प्रायोजित करने वाली संस्थाओं ने भी जहां इस मेले से दूरी बना ली

-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। राजस्थान में कोटा (उत्तर) के पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल ने कहा कि कोटा का दशहरा मेला दोनों नगर निगमों की आपसी खींचतान के कारण अपनी पहचान खो रहा है। उन्होंने आशंका जताई कि कहीं यह मेला इस बार अव्यवस्थाओं की भेंट ना चढ जाए।
श्री गुंजल ने संभागीय आयुक्त को पत्र लिखकर कहा कि वर्तमान कांग्रेस बोर्ड ने कोटा के राष्ट्रीय दशहरा मेले की पहचान ही खो दी है। कर्नाटक के मैसूर व राजस्थान के कोटा में आयोजित होने वाले दोनों ही राष्ट्रीय दशहरा मेले है। एक और जहा मैसूर के राष्ट्रीय दशहरा मेले का उद्घाटन राष्ट्रपति ने किया गया व 290 कार्यक्रम भी तय किये जा चुके है, वही कोटा के राष्ट्रीय दशहरा मेले में अभी तक यह तय नहीं हो पाया कि क्या कार्यक्रम होंगे, कौन आयोजक होगा, कौन प्रायोजक होगा। दोनों बोर्डो के बीच सामंजस्य नही होने व आपसी खींचतान के चलते दशहरे का उद्घाटन भी मात्र औपचारिकता बन कर रह गया।
श्री गुंजल ने कहा कि चाटुकारिता व आपसी खींचतान के चलते प्रतिवर्ष कई बड़े-बड़े कार्यक्रमों को प्रायोजित करने वाली संस्थाओं ने भी जहां इस मेले से दूरी बना ली है, वही बाहर से आने वाले व्यापारियों का भी मेले के प्रति रुझान कम हो रहा है जिसक चलते कोटा के दशहरा मेला के इन अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ने का अंदेशा है।
उन्होंने कहा कि इन अव्यवस्थाओं के विपरीत होना यह चाहिए था कि राष्ट्रीय दशहरा मेला है तो इससे पूर्व एक बैठक बुलाई जाती जिसमें शहर के संभ्रांत लोगों, समाजसेवी संगठनों, विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बना चुके लोगों व राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों को बुलाया जाता व सबसे चर्चा कर मेले को नया स्वरूप देने का प्रयास किया जाता क्योंकि दशहरा मेला किसी बोर्ड या किसी पार्टी का मेला नहीं है। दशहरा मेला 128 वर्षों से अपनी पहचान बनाए हुए हैं। कोटा इस साल 129वें मेले का आयोजन करने जा रहे हैं तो इसमें पूरे शहर की सहभागिता होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा लग रहा है कि 129 वां मेला नगर निगम बोर्ड की चाटुकारिता व अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ने जा रहा है।

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