राजस्थान में सियासी उबाल: भाजपा के ‘भाग’ से ना छींका टूटा-ना बासी कढ़ी में उबाल आया

अशोक गहलोत का राजनीतिक अनुभव, कौशल, चातुर्य काम आया

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अशोक गहलोत

-कृष्ण बलदेव हाडा-
राजस्थान में सत्ता हासिल करने के लिए की गई लाख कोशिशों के बाद भी जब भारतीय जनता पार्टी की दाल नहीं गली तो अब उसके नेता बौखला गए हैं और राजनीतिक बदहवासी के आलम में उलजुलूल बयान देकर अब तक हुई अपनी किरकिरी से उबरने की असफल कोशिश में लगे हैं। प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से लेकर गृह मंत्री और पूर्व पार्टी अध्यक्ष अमित शाह जैसे नेताओं के इशारों पर प्रदेश कांग्रेस में मची खींचतान के बीच दो बार अपना चूल्हा सुलगा कर खिचड़ी पकाने की कोशिश की, लेकिन अफसोस यही रहा कि दोनों बार सुलगता चूल्हा राख में बदला और वह भी ठंडी पड़ गई तो अब बौखलाहट में बेसिर-पैर के आरोप लगा रहे हैं।

कृष्ण बलदेव हाडा

भाजपा की पहली कोशिश तो पक्की थी जब पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पद से हटाये गये पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री पद के लालच में बगावत का झंडा बुलंद किया था। कांग्रेस पार्टी की पहल पर पिता के आकस्मिक निधन के बाद 25 साल की कम उम्र में सांसद बनाने, केंद्र सरकार में जिम्मेदारी सौंपने, प्रदेश कांग्रेस की कमान
थमाने और कम ही उम्र में ही राजस्थान जैसे महत्वपूर्ण राज्य का उप मुख्यमंत्री जैसा गरिमामय पद सौंपे जाने के बावजूद सचिन पायलट समर्थक नाशुक्रे लोग पार्टी नेतृत्व पर सचिन पायलट की उपेक्षा का बेहूदगीभरा आधारहीन आरोप जड़ते नजर आते रहे।
इन्ही नाशुक्रों सहित सचिन पायलट के नेतृत्व में मलाईदार पद के लालच में कुछ विधायकों ने बगावत की पताका लहराई तो केंद्र से लेकर राज्य तक के भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की बांछें खिल गई क्योंकि दूसरो की पत्तल में झाकने के आदी भाजपा नेता तो पहले ही से पलक-पावडे बिछाये बैठे हुए थे। ‘खुशामदीद-खुशामदीद’ जैसे शब्दों और 32 इंची मुस्कान के साथ जयपुर से लेकर हरियाणा के मानेसर तक केसरिया कालीन बिछा दिया। भारतीय जनता पार्टी ने मानेसर को बगावतियों की पनाहगाह के रूप में इसलिए चुना कि वहां खट्टर के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। हरियाणा पुलिस ने सुरक्षा दी लेकिन दांत खट्टे ही रह गई।
हालांकि उन्हें उम्मीद थी कि सचिन पायलट का बगावती लालच कांग्रेस और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कहीं का नहीं छोड़ेगा लेकिन यहां अशोक गहलोत का राजनीतिक अनुभव, कौशल, चातुर्य काम आया जो कभी उन्होंने नरेंद्र मोदी-अमित शाह जैसे दिग्गजों की सक्रिय भागीदारी के रहते भी सोनिया गांधी के करीबी उनके निजी सचिव-सलाहकार अहमद पटेल को गुजरात में भारतीय जनता पार्टी को पटकनी देने में काम आया था और लाख कोशिशें करने के बावजूद
भारतीय जनता पार्टी अहमद पटेल को राज्यसभा में पहुंचने से रोक नहीं पाई थी। गहलोत के इसी राजनीतिक कौशल के चलते सत्ता पाने के लिए मुंह धोए,लार लटकाए बैठे केंद्र और राज्य के भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के हाथों के तोते उड़ गए। हालांकि भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा राहत सचिन पायलट और उनके समर्थकों को मिली जिन्होंने खुली बगावत की और प्रदेश के कांग्रेस नेताओं ने उन्हें बार-बार गद्दार करार दिया लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने नरमी बरती। शायद सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट के दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी से नजदीकी रिश्तों की ठंडी छांव उन्हें यह सकून दे गई थी।
पिछले दिनों एक बार फिर अशोक गहलोत-सचिन पायलट में ठनी तो भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को इस बार बात बनती नजर आई क्योंकि कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार भी सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री और अशोक गहलोत को कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर देखना चाहता था तो भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष
सतीश पूनिया ने तो फ़िर बुझी राख से भरे चूल्हे में सूखी लकड़ियां डालकर बासी कढ़ी चढ़ा दी कि शायद इस बार
बासी कढी में उबाल नहीं आने की पुरानी कहावत झूठी साबित हो जाए, लेकिन अशोक गहलोत और उनके दिग्गज सिपहसालार ताकतवर कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल और व्यक्तिगत मित्र और ट्रबल शूटर माने जाने वाले धर्मेंद्र सिंह राठौड़ ने सतीश पूनिया जैसे नेताओं को चूल्हा तक सुलगने नहीं दिया तथा सचिन पायलट की इस कोशिश पर पानी फ़ेरते हुये अशोक गहलोत के समर्थन के साथ 102 विधायकों ने केंद्र से आए पर्यवेक्षक मलिकार्जुन खड़गे और प्रदेश के प्रभारी अजय माकन की ओर से बुलाई गई विधायक दल की बैठक का बहिष्कार कर शांति धारीवाल के आवास पर बैठक करके अशोक गहलोत को ही अपना कर्णधार माने रखा।
खास बात यह कि पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता श्रीमती वसुंधरा राजे को अशोक गहलोत के राजनैतिक कौशल पर पूरा भरोसा था इसीलिए भारतीय जनता पार्टीके प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के सचिन पायलट के लिए सदैव पार्टी के दरवाजे खुले होने का दावा करने के बावजूद भी वे चुप्पी साधे रही और नतीजा भी वहीं रहा। बासी कढ़ी में उबाल न आने की कहावत झूठी नही निकली।
अब भारतीय जनता पार्टी के नेता अशोक गहलोत की जगह अप्रत्यक्ष रूप से सचिन पायलट को ही यह कहते हुए कोसने में लगे हुए हैं कि कांग्रेस में नूरा कुश्ती चल रही है। हर पांच साल में राजस्थान में सरकार बदलने की पिछले तीन दशक से चली आ रही परिपाटी के चलते पिछले करीब पौने चार साल से सत्ता से बाहर रहने के कारण छटपटा रहे प्रदेश भारतीय जनता नेता जिनमें पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और कभी श्रीमती वसुंधरा राजे सरकार में ताकतवर मंत्री रहे राजेंद्र सिंह राठौड़ शामिल है, को यह कौन समझाए कि भाग्य ही खराब है इसलिए इस बार भी ना छीका टूटा और ना ही बासी कढ़ी में उबाल आया। अब शायद अहसास हो जाये कि दाव ही गलत घोड़े पर लगाया हुआ था।

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