महापौर-जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा करने पर आमादा है निगम प्रशासन

यही नहीं कोटा नगर निगम दक्षिण के महापौर तो एक नहीं बल्कि दो बार निगम के आयुक्त को यू नोट लिखकर निगम बोर्ड की बैठक बुलाने के लिए कह चुके हैं लेकिन उसके बावजूद निगम प्रशासन ने अभी तक बोर्ड की बैठक नहीं बुलाई है। यही नहीं निगमायुक्त ने तो महापौर के यू नोट का जवाब देना तक भी उचित नहीं समझा है, बैठक बुलाने के संबंध में उनसे चर्चा करने का तो सवाल ही नहीं।

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-कोटा के दोनों नगर निगमों की।साधारण सभा के 8 माह बाद भी बैठक नहीं

-कृष्ण बलदेव हाडा-

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कृष्ण बलदेव हाडा

कोटा। कोटा के दोनों नगर निगम उत्तर और दक्षिण के निगम बोर्ड की बैठक बुलाने के मामले में निगम प्रशासन न केवल पूरी तरह से हठधर्मिता पर आमादा है बल्कि लगातार निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा कर इस लोकतांत्रिक संस्था को अपमानित कर रहा है।
यह हालत तब है जब कोटा उत्तर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित कांग्रेस के विधायक शांति धारीवाल न केवल राजस्थान के नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री हैं बल्कि उन्हीं की अगुवाई में लड़े गए पिछले चुनाव के बाद कोटा के दोनों नगर निगमों में कांग्रेस के बोर्ड बने थे और उनकी इच्छा के अनुरूप ही दोनों नगर निगमों में महापौर और उप महापौरों की नियुक्ति की गई थी लेकिन अब स्थिति यह है कि दोनों नगर निगमों के न केवल सत्तारूढ़ कांग्रेस के बल्कि विपक्ष भारतीय जनता पार्टी के पार्षद लिखित में दोनों नगर निगमों की अलग-अलग बैठकें बुलाने के प्रस्ताव निगमों के आयुक्तों को दे चुके हैं, यहां तक की महापौर ने तो नगर निगम बोर्ड की बैठक बुलाने के लिए यू नोट तक आयुक्त को जारी किया है लेकिन इसके बावजूद भी उनके आदेशों की लगातार अवहेलना करते हुए निगम प्रशासन बोर्ड की बैठक को नहीं बुला रहा है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के दोनों नगर निगमों के पार्षदों के प्रतिनिधिमंडल अलग-अलग निगम आयुक्तों को विधिवत ज्ञापन सौंपकर निगम बोर्ड की बैठक बुलाने की मांग कर चुके हैं ताकि बोर्ड के काम को फिर से सुचारू रूप से न केवल शुरू किया जाए बल्कि दोनों नगर निगमों के बजट पर भी चर्चा की जा सके क्योंकि अगले महीने फरवरी में राज्य सरकार की मंजूरी के लिए दोनों नगर निगमों के बजट के प्रस्ताव तैयार करके भिजवाए जाने हैं।
यही नहीं कोटा नगर निगम दक्षिण के महापौर तो एक नहीं बल्कि दो बार निगम के आयुक्त को यू नोट लिखकर
निगम बोर्ड की बैठक बुलाने के लिए कह चुके हैं लेकिन उसके बावजूद निगम प्रशासन ने अभी तक बोर्ड की बैठक नहीं बुलाई है। यही नहीं निगमायुक्त ने तो महापौर के यू नोट का जवाब देना तक भी उचित नहीं समझा है, बैठक बुलाने के संबंध में उनसे चर्चा करने का तो सवाल ही नहीं।

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नगर पालिका अधिनियम-2009 के नियमानुसार यह प्रावधान किया हुआ है कि हर स्वायत्तशासी निकाय की बैठक तीन महीने यानि 90 दिन में बुलाया जाना आवश्यक है लेकिन स्थिति यह है कि कोटा नगर निगम (दक्षिण) के बोर्ड की बैठक में हुए 10 महीने का समय बीत चुका है। यानी नियमानुसार इन बीते 10 महीनों में अब तक कम से कम तीन बार बोर्ड की बैठक हो जानी चाहिये थी, लेकिन एक भी नहीं हुई है। कमोबेश यही हालत कोटा नगर निगम उत्तर की है,जिस क्षेत्र से नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल विधायक चुने गए है।=====================================================

इस बारे में जनप्रतिनिधियों का कहना है कि बोर्ड की बैठक नहीं हो पाने के कारण पूर्व की बैठकों में किए गए फैसलों पर अमल नहीं हो पा रहा है और ना ही बोर्ड की दशा-दिशा दशा सुधारने की दृष्टि से साधारण सभा की बैठक में कोई और निर्णय हो पा रहे हैं जिसके कारण शहर में आवारा मवेशी, रोड लाइट, सड़कें, सीवरेज लाइन, सफाई व्यवस्था जैसे मसलों पर उठाए जा रहे कई सवाल अभी तक अनुत्तरित हैं। बोर्ड की बैठक नहीं होने के कारण प्रशासन की कोई जवाबदेही जनप्रतिनिधियों के सामने नहीं रह गई है। इसी को देखते हुए कई जनप्रतिनिधि लगातार यह आरोप भी लगा रहे हैं कि अधिकारी इसीलिए साधारण सभा की बैठकें नहीं बुला रहे हैं ताकि उन्हें निर्वाचित पार्षदों के शहर की विभिन्न समस्याओं को लेकर तीखे सवालों पर जवाब नहीं देना पड़े।
जनप्रतिनिधियों का यह कहना है कि कोटा नगर निगम दक्षिण के बोर्ड की कई समितियों का गठन हो चुका है और उनकी बैठकें भी होती रहती है जिसमें जनता से जुड़ी विभिन्न समस्याओं के निस्तारण और विकास से मसलों पर चर्चा करने के बाद फैसले किए जाते हैं लेकिन इन फैसलों का अनुमोदन इसलिए नहीं हो पा रहा क्योंकि बोर्ड की बैठक तो हो ही नहीं रही,अनुमोदन कहां हो?
बोर्ड की कोटा नगर निगम दक्षिण के बोर्ड की कई समितियों जिसमें विद्युत समिति, निर्माण समिति, प्रचार समिति, अतिक्रमण समिति आदि शामिल है, उनके सदस्य और अध्यक्ष बैठक करके अब प्रशासन को यह चेतावनी देने के लिए मजबूर हुए हैं कि यदि अगले एक पखवाड़े में साधारण सभा की बैठक नहीं बुलाई गई तो वे तंबू गाड़ कर नगर निगम कार्यालय के बाहर धरना देने को मजबूर होंगे।
बोर्ड की साधारण सभा की बैठक नहीं होने पर सत्तारूढ़ कांग्रेस के पार्षदों की चिंता तो है ही साथ ही प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के पार्षद भी इस मसले पर गहरी नाराजगी जता चुके हैं और उन्होंने भी निगम प्रशासन को ज्ञापन देकर साधारण सभा की बैठक बुलाने की मांग की अन्यथा इसके खिलाफ आंदोलन करने के लिए चेताया है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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