
-संजय चावला-

सुप्रसिद्ध तर्कवादी तथा सोशल एक्टिविस्ट डा. नरेंद्र दाभोलकर के शहादत दिवस पर रविवार को वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय तथा विकल्प जन सांस्कृतिक मंच के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविद्यालय के विज्ञान भवन में वैज्ञानिक सोच और आज का युवा विषय पर संयुक्त परिचर्चा का आयोजन किया गया. परिचर्चा में बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के संकाय सदस्यों तथा छात्र छात्राओं के अतिरिक्त शहर के शिक्षाविद, संवैधानिक मूल्यों में आस्था रखने वाले प्रबुद्धजन शामिल हुये.
अपनी अज्ञानता को स्वीकारें और उत्तर खोजें: प्रो. चावला
विषय प्रवर्तन करते हुए प्रो. संजय चावला ने कहा कि चीज़ों को समझने के लिए विज्ञान ही एक मात्र रास्ता है. जो कुछ भी विज्ञान की कसौटी पर नहीं ठहरता वो अन्धविश्वास है.वैज्ञानिक सोच तभी बन सकती है जब हम अपनी अज्ञानता को स्वीकारें और उत्तर खोजें.कोई भी बात जिसे परिक्षण, प्रयोग या एविडेंस के माध्यम से साबित नहीं किया जा सकता उसे हमें फिक्शन या अंधविश्वास मान कर खारिज कर देना चाहिए.हमारे समाज में क्रिटिकल थोट प्रोसेस अपनाने वाले तर्कवादी लोग मुट्ठी भर ही हैं. हमें स्वयं में साइंटिफिक टेम्पर विकसित करना होगा ताकि हम ऐसे लोगो के समर्थन में खड़े हो सके.
वैज्ञानिक सोच रखेंगे तोखतरनाक एजेंडे का शिकार होने से बचेंगे: द्विवेदी
मुख्य वक्ता एडवोकेट दिनेशराय द्विवेदी ने कहा कि उनका जन्म घोर परम्परावादी और रुढ़िवादी परिवार में हुआ किन्तु उनके परिवार ने कभी उनकी जिज्ञासु और प्रश्न करने की प्रवृत्ति का कभी शमन नहीं किया. उन्होंने कहा कि हमारा संविधान वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद तथा जिज्ञासा और उसमे सुधार की बात करता है औरचाहता है कि इसे प्रत्येक नागरिक की फंडामेंटल ड्यूटी बनाया जाये. इस वैज्ञानिक युग में हमारा फ़र्ज़ बनता है कि हम किसी भी प्रकार की मान्यता के दावों को तार्किक और वैज्ञानिक तरीके से जांच लें. फेक न्यूज़ औरपोस्टट्रुथ के युग में यदि आप सावधान नहीं रहे तो आप किसी खतरनाक एजेंडे का शिकार हो सकते हैं.
तर्क करें, सवाल पूछें- यही साइंटिफिक टेम्पर है: डा. भार्गव
मुख्य अतिथि कन्या महिला कालेज के प्राचार्य डा. संजय भार्गव ने कहा कि छात्रों में तर्क करने और सवाल पूछने की प्रवृत्ति आवश्यक रूप से होनी चाहिए. विज्ञान में कुछ भी अन्तिम सत्य नहीं होता विज्ञान में भी समय के हिसाब से परिवर्तन होता रहता है.सहिष्णुता का प्रदर्शन भी वैज्ञानिक स्वभाव का प्रतीक है. छात्रों में यदि जिज्ञासा की प्रवृत्ति है तो उनमे साइंटिफिक एप्टीट्यूडहै.उन्होंने प्रो. सी वी रमण का उदाहरण देते हुए छात्रों को बताया कि उनके जीवन में टाईम मेनेजमेंट का बहुत महत्त्व है जिसके माध्यम से वे अपना सर्वांगीण विकास सुनिश्चित कर सकते हैं.
अन्धविश्वाश हमारी प्रगति में बाधक: डा. परिहार
विशिष्ठ अतिथि कालेज शिक्षा के सहायक निदेशक डा. रघुराज परिहार ने कहा कि वैज्ञानिक सोच के बिना किसी भी देश का विकास संभव नहीं है. धार्मिक होना बुरा नहीं है किन्तु अन्धविश्वाश हमारी प्रगति में बाधक हैं. हमारा ब्रह्माण वैज्ञानिक नियमों पर ही टिका हुआ है. उन्होंने युवा वर्ग का आवाहन किया कि वे अपनी उर्जा का सार्थक उपयोग करें. उन्होंने कहा कि हमारा पाठ्यक्रम भी ऐसा होना चाहिए जो हमें पोंगा पंथी न बनाये अपितु हमारी क्रिटिकल थिंकिंग का विकास करे.
गार्गी के समान प्रश्न करें: महेंद्र नेह
अध्यक्षता करते हुए विकल्प के महासचिव महेंद्र नेह ने कहा कि वैज्ञानिक सोच कर्म से पैदा होती है.देश दुनिया में अज्ञानता का अन्धकार बहुत गहरा है. इस अन्धकार को दूर करने के प्रयास में ईसा मसीह, सुकरात, गेलिलियोतथा डा. दाभोलकर जैसे तर्कवादियों को अनेक कष्ट झेलने पड़े. यहाँ तक कि उन्हें अपने जीवन की भी आहुति देनी पड़ी. भारत में शास्त्रार्थ की परंपरा रही है. उन्होंने छात्रों का आवाहन किया कि वे गार्गी के समान प्रश्न करें. उन्होंने कहा कि समाज में जो गहरी विषमताएं हैं उन्हें देख कर यदि हमें क्षोभ नहीं होता तो हम वैज्ञानिक सोच नहीं रखते. सामाजिक विषमताओं को दूर करने के लिए हमें केटलिस्ट (उत्प्रेरक) का काम करना चाहिए. परिचर्चा का संचालन प्रो. संदीप हुड्डा ने किया तथा अंत में विश्वविद्यालय केअकादमिक निदेशक डा. बी. अरुण कुमार ने इस सफल, सार्थक और विचारोतेजक परिचर्चा के लिए आयोजकों को साधुवाद दिया.