अब और भार नहीं उठा सकते

-विवेक कुमार मिश्र-

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

सांसारिकता अलग ढंग से जीने का
आकर्षण पैदा करती है
आप इस या उस संसार में हो
कहीं भी रहते हों
इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता
संसार में होना जिंदा होने की शर्त है
जिंदा होने के लिए थोड़ा झुकना पड़ता है
रह रह कर भीतर बाहर की यात्रा पर जाना पड़ता
ज्यादा अकड़ने पर तो देह की हड्डियां जवाब दे देती
अपनी हड्डियों पर देह को तान कर रखना
देह को जीना होता है ‌‌
देह जीती है अपने अर्थ व्यापार में
देह का टंगा होना ही उपलब्धि है
देह अपने दर्द में आत्मा को कह जाती
संसार में आकर ही देह
जीवन व संसार को धारण करती है ।
यहां इतना कुछ है कि
इसे किसी एक रूप में नहीं देखा जा सकता
समय समय पर देह ही रचती
विधान संसार और कृति का संसार
एक समय के बाद इतना भी कह देती हैं कि
भाई ! संभाल अब और वजन नहीं उठा सकते ।

प्रो.विवेक कुमार मिश्र

सह आचार्य हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
एफ -9 समृद्धि नगर स्पेशल बारां रोड कोटा -324002

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