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ग़ज़ल

शकूर अनवर

शकूर अनवर
अब मुहब्बत भी कहाॅं दिल का चलन देखे है।
अब तो जो बात करे मन की वो तन देखे है।।
*
वो क़दम अपने ज़मीं पर जो रखे तो पूछूँ।
इतनी बेताबी से क्यूँ नील गगन देखे है।।
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कोई सोचे तो सही मौत का सस्ता होना।
लोग बस क़ीमती कितना है क़फ़न देखे है।।
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देखना होगा कि दुनिया को किधर ले जाऍं।
ये ज़माना तो ज़माने का चलन देखे है।।
*
इसमें समझो कोई जीने का इशारा समझो।
कितनी हसरत से हमें गंगो जमन देखे है।।
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हम कहीं भी तो नज़र से नहीं उतरे “अनवर”।
ऑंख फिर भी नहीं ऐसी जो बदन देखे है।।
*
शकूर अनवर

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