
ग़ज़ल
शकूर अनवर
दिनभर का जो भूखा होगा।
रात को कैसे सोया होगा।।
*
उनके घर शहनाई बजेगी।
अपने घर सन्नाटा होगा।।
*
कल की रात भी बाहर गुज़री।
उसने क्या क्या सोचा होगा।।
*
बोझिल बोझिल ऑंखें उसकी।
रात गये तक जागा होगा।।
*
बटवारे से दूर ही रहना।
इसमें तेरा मेरा होगा।।
*
ख़ून ख़राबा छोड़ो वरना।
कल का सूरज काला होगा।।
*
होगा तो वो घर के अन्दर।
लेकिन मुझको टाला होगा।।
*
शहर बना है शहर ए ख़मोशाॅं*।
कैसे शोर शराबा* होगा।।
*
जैसे जैसे शाम ढलेगी।
और भी साया लंबा होगा।।
*
वक़्त ने करवट बदली “अनवर”।
अब जो होगा अच्छा होगा।।
*
शहर ए ख़मोशाॅं* क़ब्रिस्तान
शोर शराबा* बेहद शोर धूम धाम
शकूर अनवर
9460851271