
– विवेक कुमार मिश्र-

दीपपर्व
के साथ खिल – खिल कर
रचते हैं मिट्टी के दीये
उल्लास का रंग
प्रकाश का वृत्त
इस वृत्त में
अंधियारा छटता जाता
रह जाता मन का उजियारा
दीपपर्व के साथ
यह उल्लास का रंग पर्व
मन के उजलेपन से
खिला है चारों तरफ
उजास का रंग
मन का उजियारा
दीपपर्व के साथ
धरती पर पसरा
एक उजाला रच देता
संघर्ष का इतिहास
अपने होने का अहसास
और रचता है मन की गाथा
संस्कृति का उत्सव
पृथ्वी पर चेतना का पर्व ।
और सभ्यता के पथ पर
संस्कृति ने रच दी दीये की रोशनी …..
अंधकार से
जूझता रहा मानव
आदिम समय से
संघर्ष की पतवार लिए
चलता रहा मानव
इस क्रम में
एक दिन संघर्ष की मशाल
जल उठी
चमक उठी मन में
उजियारे की आस
और गढ़ ली…..
माटी से दीये की आस
उम्मीद की रोशनी
और सभ्यता के पथ पर
संस्कृति ने रच दी दीये की रोशनी …..
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