…देख अंज़ाम इनका पतझर है

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फोटो अखिलेश कुमार

-चांद शेरी-

chand sheri
चांद शेरी

खूब इस शहर का भी मन्ज़र है
हाथ में हर किसी के पत्थर है
अक्से-आईना हर घड़ी हर पल
ज़िन्दगी का बदलता तेवर है
मीर-तुलसी-कबीर को पढ़िये
उनका अनमोल अक्षर-अक्षर है
पी गया विष जो दूसरों के लिए
भेष में आदमी के शंकर है
लब पे सहरा की प्यास है लेकिन
मेरी आँखों में इक समन्दर है
मिट रहे हैं घरोंदे बन-बन कर
रेत है और मेरा मुक़द्दर हैं
इन बहारों पे तू न जा ‘शेरी’
देख अंज़ाम इनका पतझर है

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