यह संसार तो ऐसे ही चलता चला जायेगा

poem

-डॉ विवेक कुमार मिश्र-

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

श्वेत-श्याम के भीतर
कितना कुछ रंग खींच जाता
जीवन का यह
एक दूसरे के साथ एक स्थान से
बनती बिगड़ती रेखाएं तय करती है
यह कोई नहीं जानता कि
इस क्रम में कौन सी रेखा
किस कोण पर कितना मुड़ जायेगी
यह संसार तो ऐसे ही
चलता चला जायेगा
एक बनती रेखा दूसरी बिगड़ती रेखा
से कुछ इसी तरह के सवाल करते
आगे बढ़ जाती है।

(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)

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