
-चाँद ‘शैरी’-
राही बैठे लुट कर कितने
रहजन निकले रहबर कितने
पूछे उस कातिल से कोई
जालिम काटेगा सर कितने
ये फिकरे-बाजी रहने दो
मारोगे अब कंकर कितने
उछले-कूदे फिर नाचे जो
संसद में थे बन्दर कितने
हैरां है मन्दिर-मस्ज़िद भी
उनकी ख़ातिर खन्ज़र कितने
सोने-चांदी की दुनिया में
असली निकले जेवर कितने
शेरी इन ज़ख्मों से पूछो
हम पर बरसे पत्थर कितने
चाँद ‘शैरी’ (कोटा)
098290-98530
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