
-सुनील कुमार मिश्रा-

1947 के बंटवारे के बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान के हालात बेहतर नही थे। पूर्वी पाकिस्तान में स्थापित प्रभावशाली बंगाली लोगों एवं पाकिस्तान के चार प्रान्तों में बसे बहु-जाति पाकिस्तानी लोगों के बीच राज्य करने के अधिकार को लेकर चल रहे मुक्ति संघर्ष अनवरत चल रहा था। 1970 के आम चुनावों में आवामी लीग के नेता शेख मुजीबर्हमान रहमान को मिली अपार सफलता इस्लामाबाद में बैठे पाकिस्तानी हुक्मरानों को हजम नहीं हुई। जिसके परिणाम स्वरूप पूर्वी पाकिस्तान मे पाकिस्तान सेना द्वारा भीषण नरसंहार हुआ। शेख मुजीबर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया और बड़ी संख्या मे शरणार्थी भारत मे प्रवेश करने लगे। भारत सरकार ने मानवीय दृष्टि को ध्यान मे रखते हुये, अपनी खराब आर्थिक स्थिति के बावजूद अपनी पूर्वी सीमाओं को खोल दिया और पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, मेघालय सरकारों द्वारा बड़े स्तर पर सीमावर्त्ती क्षेत्रों में शरणार्थी कैम्प भी लगाये गए। भारत सरकार द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति पर ध्यान देने की बारम्बार अपील की। तत्कालीन विदेश मन्त्री स्वर्ण सिंह के विभिन्न देशों के विदेश मंत्रियों से भेंट करने के बावजूद भी कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं प्राप्त हुई।

इसी बीच पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर हवाई हमले कर दिये, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेशी स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के समर्थन में कूद पड़ी । युद्ध पूर्वी और पश्चिमी दोनो फ्रंटो पर लड़ा गया। 1971 का भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध मात्र 13 दिन चला। यह युद्ध के इतिहास का सबसे लघुतम युद्ध था, लेकिन इस 13 दिन चलने वाले युद्ध मे भारतीय फौजों ने सामने पाकिस्तान की सेना की इस कदर कमर तोड़ी कि पाकिस्तान के 93000 हजार वर्दीधारी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। 16 दिसम्बर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश नाम से नया राष्ट्र घोषित कर दिया गया।
इस युद्ध से पूर्व तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी भारत एवं सोवियत संघ के बीच मित्रता की संधि कर चुकी थी और सोवियत संघ से भारत सरकार का ना सिर्फ खुल कर समर्थन किया बल्कि बड़ी विदेशी ताकतो को बीच मे दखलंदाजी ना करने के लिये आगाह भी किया। सन् 1971 के युद्ध मे ऐतिहासिक जीत और 1974 मे पोखरण मे परमाणु विस्फोट करके भारत को परमाणु सम्पन्न राष्ट्र की श्रेणी मे खड़ा करके अंतर्राष्ट्रीय पटल को चौका दिया।
पाकिस्तान के युद्ध के बाद इन्दिरा जी के बहुत सारे भाषणों को मैने सुना, अखबारो में खोज-बीन की लेकिन भारत की इस शेरनी के मुँह से इस युद्ध के बारे मे एक शब्द भी नही सुनने को मिला…
(लेखक राजनीतिक टिप्पणीकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)