
-सुनील कुमार मिश्रा-
बात 1998 की है । श्रीमती शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री होने के बाद उन्नाव लखनऊ बाईपास चौराहे पर अपने श्वसुर एवं देश के पूर्व गृहमंत्री पं उमाशंकर दीक्षित की मूर्ति का अनावरण करने उन्नाव जिले आ रही थीं।
इस एक कार्यक्रम का आयोजन एवं अध्यक्षता उ.प्र. के पूर्व गृहमंत्री गोपीनाथ दीक्षित कर रहे थे। इस अवसर पर नारायण दत तिवारी (विशिष्ट अतिथि), मोहसिना किदवई, ब्रह्मदत्त, बलराम सिंह यादव, रामनरेश यादव, सलमान खुर्शीद, स्वरुपकुमारी बक्शी, प्रमोद तिवारी, संदीप दीक्षित, आरती बाजपेयी उपस्थिति थे। इससे पहले श्रीमती शीला दीक्षित उन्नाव संसदीय सीट से (नारायण दत्त तिवारी की कांग्रेस) से चुनाव लड़कर हार चुकी थीं।
सभा संचालक ने मंच से जोश में कह दिया कि जिस कोहनूर को उन्नाव जनपद की जनता ने नहीं पहचाना उसको दिल्ली की जनता ने ना सिर्फ चुनाव जिताया बल्कि बतौर मुख्यमंत्री बना कर आज उन्नाव भेजा है। ये बात मंच पर उपस्थित पं नारायण दत्त तिवारी जी को अखर गई। वह तुरन्त उठ खड़े हुये अपनी जगह से और संचालक को फटकारते हुये माईक लेकर बोले इनकी तरफ से मैं माफी मांगता हूँ, हम लोकतांत्रिक देश मे रहते है जहाँ जनता का हर फैसला सम्मानीय और आदर योग्य होता है। हमको कोई हक नहीं उन्नाव जनपद के निवासियों के फैसले पर अंगुली उठाने का।
देश की लोकतंत्रीय व्यवस्था पर पूर्ण आस्था रखने वाले, जनता के सम्मान के प्रति अति जागरुक और हर पल विकास की सोच रखने वाले शरीर छोड़ चुके स्वर्गीय पं नारायण दत्त तिवारी जी के पृथ्वीलोक से विदा होने पर हम अश्रुपूरित श्रृद्धांजलि देते हैं।