सुदामा की चॉय …मन की आंच और घर का स्वाद ….

चॉय एक संसार और एक संस्कृति है ...किस तरह हम चॉय पीते हैं ? किसके साथ पीते हैं ? चॉय पर कौन होता और कौन नहीं ? ये सब मिलकर न केवल चॉय का स्वाद बनाते हैं वल्कि देश का मिजाज भी चॉय पर चलता रहता है

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– विवेक कुमार मिश्र-

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

चॉय पर जीवन और देश का मन व घाट बसता रहता है। चॉय एक सामाजिक दुनिया का रंग है …इस संसार में बातों का एक ऐसा खुला मंच है जिसपर सब अपने आप आ जाते हैं …बस एक ही योग्यता है विचार में आस्था और असहमति के लिए तर्क व साहस …ये सब मिलकर एक साथ चॉय के लिए जगह बनाते हैं | चॉय एक संसार और एक संस्कृति है …किस तरह हम चॉय पीते हैं ? किसके साथ पीते हैं ? चॉय पर कौन होता और कौन नहीं ? ये सब मिलकर न केवल चॉय का स्वाद बनाते हैं वल्कि देश का मिजाज भी चॉय पर चलता रहता है। न थमने वाली बहस भी चॉय पर होती रहती तो मित्रों के संग बहस मुबाहिसे में रतजगा भी चॉय की गाथा के लिए काफी होता है । चॉय की भाप में एक जीवन गाथा और मानवीय स्वप्न की जीवंत दुनिया बैठी होती है। सपनों को जीने के लिए , चेतना की भूमि पर जीवन स्पंदन को जानने व गुनने के लिए चॉय की बात आ जाती है । जीवन में जो खालीपन होता उसे भरने का काम चॉय करती है। चॉय पर बैठे लोग अपरिचय में भी परिचय की गांठ लगा जाते …कोई भी बात हो चॉय के साथ देश दुनिया की बातें आ जाती हैं | चॉय की हर घूंट में जीवन की आंच व मन की भाप होती है …यहां से उठती भाप व गरमाहट मानवीय रिश्तों की आंच से जोड़ते हुए हम सबसे जीवन की बात करती रहती है। चॉय एक जिन्दगी का अर्थ लिए हम सबके साथ जीवन पथ पर चलती रहती है । चॉय के भाप में मन और देश का खेत खलिहान एक साथ पलता है । चॉय की भाप में गांव घर का स्वाद घुला रहता ….साथ में मन का वह रिश्ता भी जिसके रास्ते हम संसार में आते हैं । सांसारिकता और संस्कृति का पाठ चॉय के स्वाद को लिए हुए अर्थ की जिन्दगी को हमारे साथ जोड़ देते हैं । चॉय सहज , सरस ,सरल व स्नेहिल दुनिया को हमारे साथ जोड़कर रख देती है…चॉय पर घर परिवार और जीवन को जीते हुए मानवीय संबंधों को हम जीते हैं । मन की भाप लिये हुए चॉय जीवन रूपी उष्मा की आँच पर गरम होती रहती है। चॉय पर एक साथ घर और जीवन के सारे रिश्ते अपनी महक के साथ शुरू हो जाते हैं । चॉय अकेली नहीं होती …चॉय के साथ घर , खेत खलिहान और अपने छोटे से बाजार व शहर की गंध गुंथी होती है । चॉय के साथ एकबारगी हम मानवीय रिश्ते को जीने लगते हैं …चॉय पर सीधे जीवन होता है ….जीवन को जीना और समझना चॉय के साथ ही शुरु होता है ….चॉय के जिस मानवीय रिश्ते को लेकर शहर में चले थे वह शहर कब बेगानेपन के साथ चल पड़ता कह नहीं सकते ऐसे में शहर की जिन्दगी को जीते हुए मानवीय रिश्ते को जीते हुए शहर में चॉय पीना जीवन को जीना है।
चलें चॉय पीते हैं …सुदामा की चॉय , यह कोई आम दुकान नहीं है …यहां सपने पलते हैं साथ में जीवन की आंच पकती है …इस जीवन को समझने और जानने में आँखें जागती रहती । आँखों को सपने देखने के साथ – अपने सपने साकार करने की चेतना बनी रहे और इस सपने में वे सारी बातें , वे सारे संदर्भ आ जायें जो चॉय के साथ घर पर , अपनी दुनिया में , अपने शहर में उठती रही हैं । जब चॉय पीते तो केवल चॉय ही साथ नहीं होती चॉय के संग हमारी इच्छाएं भी होती हैं जो गर्म आंच से लेकर ठंडी होती आंच पर पकती रहती है । चॉय के पकने में मानवीय संबंधों को भी प्रौढ़ होते देखा जा सकता है । संबंधों की परिभाषा करनी हो तो सारे संबंध पारिवारिक रिश्तों के बीच बनते – बिगड़ते रहते हैं । संबंधों की इसी बुनावट पर मानवीय रिश्तों की गरमाहट को बचाने के लिए एक चॉय की दुकान खुल जाती है । वैसे तो हर सड़क पर एक चॉय की दुकान होती है । चॉय की दुकान का होना कोई बड़ी बात नहीं है पर कोई दुकान ऐसी हो जो आपका विशेष ख्याल करते हुए एक – एक जरूरत को समझते हुए चॉय परोसे तो यह केवल चॉय ही नहीं रह जाती वल्कि मां के हाथों की चॉय हो जाती तो बहन के हाथ की चॉय से लेकर पत्नी के हाथ की चॉय हो जाती …इस तरह मानवीय रिश्तों की चॉय बन जाती । यहीं नहीं आपके खास कस्बे के चॉय की दुकान बन जाती …आपको अपना स्वाद मिल जाता । एक दुकान किस तरह से मानवीय रिश्तों को जी सकता है …इसे जानने के लिए दिल्ली लॉ कॉलेज के सामने सुदामा की चॉय की दुकान खास अर्थ लिए खुलती है । सुदामा की चॉय एक प्रयोग है कि आपकी जरूरत का ख्याल रखते हुए चॉय पिलायेंगे तो स्वाभाविक रूप से जीवन की चॉय हमारे सामने होगी ।
सुदामा की चॉय विद्यार्थियों की जरूरत को ध्यान में रखते हुए मानवीय सुगंध से सुवासित होती है । चॉय से एक तरह से जीवन की दुकान चलती है । यह केवल चॉय नहीं है वल्कि मानवीय संबंधों को चॉय की घूंट के साथ पारिवारिक रिश्तों के बीच जरूरत की तरह चलती है । यह सुदामा की चॉय मूलतः सुदामा नाम के आदमी के जीवन की कहानी है । इस चॉय में स्वयं सुदामा शामिल हो जाते हैं …स्वाद व मानवीय रिश्तों के साथ । विद्यार्थियों की दुनिया विचार – विमर्श के साथ रिलेक्स मुड में चॉय के कुल्हड़ से चुस्की लेती है । यहां जो चॉय पकती है उसमें मां के स्नेह की आंच दिखती है चॉय को भगौने में पकते देखते हैं तो इस चॉय के पकने में एक साथ मां / भाभी / पत्नी / बहन के चॉय बनाने का अंदाज होता है । यहां जो चॉय होती वह अकेली चॉय नहीं होती , न वह मीठी होती , न केवल कड़क वल्कि उसमें एक साथ सब कुछ शामिल हो जाता है । यहां की चॉय एक खास आंच व महक लिए होती । मिट्टी के कुल्हड़ की चॉय मन पर अपना विशेष स्वाद रख देती है । सुदामा की चॉय को देश भर से आये स्टूडेंट्स पीते हैं । चॉय पिलाते हुए सुदामा को बराबर ख्याल रहता कि जो चॉय मिले उसमें घर का स्वाद हो । जो जिस तरह की चॉय पीता उसे उसी तरह का मिले । चॉय में तरह तरह के मशाले मिलाकर चॉय का एक नया ही स्वाद रचते । इस चॉय में बच्चों को घर का स्वाद मिलता । खुले आसमान के नीचे सर्दी में चॉय की दुकान से जो भाप उड़ती उसमें घर की आंच होती । जीवन की तपिश और आंच से एक साथ घुली चॉय युवा पीढ़ी के सपनों को रचने का काम करती हैं । सुदामा की चॉय भौतिक रूप से दिल्ली लॉ कॉलेज के सामने है पर देश के हर कोने में , हर शहर में कॉलेज के सामने की चॉय ऐसी ही होती नाम अलग हो सकता जैसे इलाहाबाद में लॉ फैकल्टी के सामने बीरेन्द्र की दुकान तो कोटा में भीम टी स्टाल …जहां चॉय भी मन और संवेदना की आंच पर पकती रहती है। यहां चॉय की दुकान एक तरह से सामाजिक चेतना की दुकान बन जाती….जहां ज्ञान , सामाजिकता और परस्पर संवाद की दुकान खुल जाती।
यहां विद्यार्थी के सपनों को साकार करने के लिए ज्ञान के दीप को जगाने के लिए ,इतिहास के झरोखे से वर्तमान को समझने की बेचैनी में चॉय की भाप आसमान तक उड़ती रहती …जितनी भाप में गरमी होती उससे कहीं ज्यादा युवा पीढ़ी के विचारों की गरमी हवा में तैरती रहती। यहां से सपनों की नौकरी के फार्म भरे जाते और जीवन पथ पर दौड़ते सपनीले युवा पीढ़ी के पंखो की ताकत को भी महसूस किया जा सकता है। समय नीति , बाजार नीति और देश की अर्थ संरचना सब अखबार की कटिंग के साथ बहश का हिस्सा बनते …यहीं से विचार और बहश उड़ते हुए देश के हर मंच पर पहुँच जाते। यहां चॉय पर बैठे लोगबाग समय का हिसाब लगाते रहते । यहां से चॉय की गूंज सामाजिक संरचना के साथ – साथ देश की धड़कन बन गूंजती रहती । जो चॉय के साथ है वहीं जिन्दगी में है । चॉय अब एक सामाजिक जरूरत है …इसके साथ ही कदम बढ़ते रहते हैं । चॉय सबकी जिन्दगी हो जाती जब अपनेपन के साथ मिलती है चॉय का यह अपनापन ही सब कुछ होता एक तरह से यहीं जिन्दगी का जीना होता है । चॉय पर बैठे हुए दुनिया जहान की बातें होती रहती …मन की गंध और जीवन का धर्म भी चॉय पर चलता रहता है । चॉय के साथ ही जिन्दगी अपनेपन को लिए – लिए चलती है।

(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)

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