आप- कांग्रेस अलग अलग हैं सियासी राहें, कैसे आ पाएंगी साथ-साथ

आप के पास दिल्ली और पंजाब ही ऐसे दो राज्य है जहां उसकी सरकार है और वहां से वह लोकसभा में पहुंचने के प्रति आश्वस्त रह सकती है। साफ है कि वह इन सीटों पर किसी के साथ कुछ भी समझौता नहीं करना चाहेगी। विपक्षी एकता के नाम पर भी। कांग्रेस भी दिल्ली व पंजाब में अपना दावा क्यों छोडना चाहेगी। ऐसे में दिल्ली की सात और पंजाब की 13 लोकसभा सीटें हैं जो कांग्रेस व आप के बीच आगे भी कलह का बायस बन सकती हैं।

 

-विपक्ष के एकता प्रयासों को लग सकता है झटका

-द ओपिनियन-

विपक्ष को अगामी लोकसभा चुनाव से पहले एकजुट करने के कांग्रेस के प्रयासों को आम आदमी पार्टी झटका दे सकती है। आम आदमी पार्टी के ताजा रुख को देखते हुए इस बात के पूरे आसार नजर आ रहे हैं। एक दिन पहले यानी बुधवार को आम आदमी पार्टी ने दो अहम बाते कहीं। एक पार्टी अगामी लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी और दूसरी बात वह समान नागरिक संहिता का सैद्धांतिक रूप से समर्थन करती है लेकिन इसे आम सहमति से लाया जाना चाहिए। साफ है वह इसे एकतरफा तौर पर लागू करने के पक्ष में नहीं है। आप के ये दोनों ही रुख कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। कांग्रेस ने समान नागरिक संहिता का दो टूक विरोध किया है, तो आप सैद्धांतिक रूप से उसका समर्थन कर रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा है एजेंडा आधारित बहुसंख्यक सरकार समान नागरिक संहिता को लोगों पर थोप नहीं सकती। उन्होंने प्रधानमंत्री के उस बयान से भी असहमति जताई जिसमें उन्होंने कहा था कि एक परिवार दो कानूनों से नहीं चल सकता। चिदंबरम का कहना है कि देश व परिवार की तुलना नहीं की जा सकती। परिवार रक्त संबंधों से बंधा होता है जबकि देश संविधान से संचालित है। प्रधानमंत्री मोदी का अपना दृष्टिकोण और चिदंबरम की अपनी दृष्टि। और राजनीतिक विश्लेषक दोनों के ही रुख को वोट के चश्मे से देख रहे हैं। दोनों की नजर अपने अपने वोटों पर है। लेकिन केजरीवाल की पार्टी ने लगता है ऐसे किसी वोट मोह से बाहर निकलकर अपनी बात कही है। आप के महासचिव संगठन संदीप पाठक ने कहा है कि हम समान नागरकि संहिता का सैद्धांतिक समर्थन करते हैं क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 44 के अनुसार देश में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए। यूसीसी के समर्थन में आई आप का कहना है कि इसके लिए सभी धर्म के लोगों, पार्टियों और संगठनों से रायमशविरा कर सहमति बनाई जानी चाहिए। आप का यह रुख कांग्रेस के रुख से अलग और भाजपा के करीब है। इसका मतलब यह नहीं है कि आप सत्तारूढ भाजपा के करीब आ रही है। संभवतः आप के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल यह संदेश देना चाहते हैं कि आप किसी पार्टी की पिछलग्गू नहीं है उसकी अपनी अलग राह है और वह किसी भी बात पर समझौता अपनी दृष्टि व अपने फायदे के अनुसार करेगी। आप के इस रुख से कांग्रेस के विपक्षी एकता के प्रयासों को झका लग सकता है।

कांग्रेस के दिल्ली से संबंधित अध्यादेश को लेकर रुख से आप खफा है। कांग्रेस ने इसकी आगे बढकर निंदा नहीं की है और आपको यह अखर रहा है। केजरीवाल पंजाब के अपने समकक्ष और आप नेता भगवंत मान के साथ विपक्षी दलों की पटना बैठक में गए थे। शरद पवार, एम के स्टालिन, अखिलेश यादव समेत विपक्ष के कई प्रमुख नेता अध्यादेश पर केजरीवाल के रुख का समर्थन कर चुके हैं लेकिन कांग्रेस उस सरह से खुलकर साथ नहीं आई। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का कहना था कि जब मामला संसद में आएगा तब देखा जाएगा। इसके लिए अभी से इतना दबाव क्यों? यानी आप व कांग्रेस के बीच फिलहाल सुलह की कोई राह नहीं दिखाई देती। लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का आप का ऐलान कांग्रेस के लिए झटका साबित हो सकता है।

आप के पास दिल्ली और पंजाब ही ऐसे दो राज्य है जहां उसकी सरकार है और वहां से वह लोकसभा में पहुंचने के प्रति आश्वस्त रह सकती है। साफ है कि वह इन सीटों पर किसी के साथ कुछ भी समझौता नहीं करना चाहेगी। विपक्षी एकता के नाम पर भी। कांग्रेस भी दिल्ली व पंजाब में अपना दावा क्यों छोडना चाहेगी। ऐसे में दिल्ली की सात और पंजाब की 13 लोकसभा सीटें हैं जो कांग्रेस व आप के बीच आगे भी कलह का बायस बन सकती हैं। आम आदमी पार्टी कांग्रेस का रास्ता काटेगी या नहीं यह बात भी राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों मे साफ हो जाएगा। केजरीवाल राजस्थान में गत दिनों अपनी पार्टी की सभा कर चुके हैं। यह सभी पंजाब से लगते गंगानगर इलाके में हुई। यानी केजरीवाल की नजर राजस्थान पर भी है। ऐसे में उनकी व कांग्रेस की राह टकराने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। फिलहाल तो कांग्रेस व आप में तकरार बढने के आसार नजर आ रहे हैं। यदि यह रार बढ़ी तो विपक्ष के एकता प्रयासों पर भी सवाल उठ सकते हैं। इससे पहले अनुच्छेद 370 पर भी आप अलग रुख अपना चुकी है। साफ है कि आप का राजनीतिक गणित विपक्ष के राजनीतिक गणित से अलग है।

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