
त्रिपुरा में प्रचार थमा, मतदान कल
-द ओपिनियन-
त्रिपुरा में चुनाव प्रचार मंगलवार को थम गया। कल यानी 16 फरवरी को मतदान है। प्रदेश की 60 सीटों पर 259 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। पिछले चुनाव में वामपंथी दलों के 25 साल के शासन को उखाड़कर सत्ता में आई भाजपा के लिए इस बार चुनौती बहुत बड़ी है। हालांकि भाजपा ने 36 सीट जीतकर अपने दम पर बहुमत हासिल कर लिया था लेकिन उसने सरकार चुनाव पूर्व के गठबंधन में शामिल आईपीएफटी के साथ मिलकर बनाई। इस बार भी दोनों दलों के बीच गठबंधन है, लेकिन इस बार भाजपा 55 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसने आईपीएफटी के लिए पांच सीटें छोड़ी हैं। एक सीट पर दोनों दलों के बीच दोस्ताना मुकाबला है। पिछली बार भाजपा की जीत में आदिवासी मतों की अहम भूमिका रही थी। जनजातीयों के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा को जबर्दस्त सफलता मिली थी। त्रिपुरा में 32 फीसदी आबादी आदिवासी समुदाय की है और राज्य की कुल 60 में से 20 सीटें जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। पिछलीबार भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन सभी आरक्षित सीटें जीतने में सफल रहा था। लेकिन इस बार टिपरा मोथा ने सारे समीकरण गड़बड़ा दिए हैं। टिपरा मोथा का गठन पूर्व शाही परिवार के सदस्य प्रद्योत विक्रम माणिक्य देव बर्मन ने 2019 में किया था। पार्टी ने आदिवासियों के लिए अपनी आवाज बुलंद की और नए ग्रेटर टिपरालैंड राज्य की मांग की। इससे पार्टी की आदिवासियों में लोकप्रियता बढी और पार्टी ने त्रिपुरा जनजातीय स्वायत्त जिला परिषद के चुनाव में जोरदार सफलता दर्ज की। इसके बाद से ही टिपरा मोथा का आत्म विश्वास बढ़ गया। पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 42 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं और उसको बड़ी सफलता की उम्मीद है। भाजपा ने सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री मोदी खुद प्रचार के अंतिम चरण में मैदान में उतरे व चुनाव सभाओं को सबोधित किया। पार्टी के अन्य कई नेताओं ने भी चुनाव प्रचार किया।
समर्थन के लिए शर्तों पर आया टिपरा मोथा
मीडिया रिपोर्टोें के अनुसार टिपरा मोथा के वरिष्ठ नेता बिजाॅय कुमार हरंगखाल ने कहा है कि पार्टी चुनाव में सबसे बडी पार्टी के रूप में उभरती है तो त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में पार्टी सरकार बनाने का दावा करेगी। उन्होंने ऐसी किसी अन्य पार्टी या गठबंधन को समर्थन देने की संभावना से इनकार नहीं किया लेकिन साथ में ही यह शर्त रख दी कि चुनाव के बाद हम सरकार के गठन में सक्षम किसी भी दल को समर्थन देने को तैयार हैं लेकिन संबंधित दल या गठबंधन को नए राज्य के निर्माण के लिए लिखित तौर पर और सदन में सहमत होना होगा। हालांकि टिपरा मोथा की नए राज्य की मांग का अब तक किसी पार्टी ने समर्थन नहीं किया है, लेकिन वाम मोर्चा व कांग्रेस का गठबंधन उम्मीद लगाए बैठा है कि चुनाव बाद टिपरा मोथा व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाएगी। वे बहुमत न मिलने की स्थिति में टिपरा मोथा के साथ गठबुंधन की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
पुरानी पेंशन योजना भी फंसा सकती है पेच
वामपंथी दल और कांग्रेस के गठबंधन ने पुरानी पेंशन योजना को लागू करने का वादा कर भाजपा के लिए एक और समस्या पैदा कर दी है। हालांकि चुनाव मैदान में तृणमूल कांग्रेस भी है और वह विकास के लिए बंगाल माॅडल की हिमायत कर रही है। लेकिन मौजूदा सियासी गणित में राजनीतिक विश्लेषकों की निगाहें बारबार टिपरा मोथा पर आकर अटक जाती हैं। टिपरा मोथा को किसी पार्टी या गठबंधन से परहेज नहीं है बस उसकी मांग मान ली जानी चाहिए। लेकिन शायद ही कोई दल टिपरा मोथा की मांग पर सहमत हो। अभी तक तो सभी दलों ने यही रुख दिखाया है कि वे नए राज्य की मांग का समर्थन नहीं करते।