“जब हो मुखिया अंधा-तो अवैध खनन बन जाता धंधा”

इस गांव के कोटा जिले के नजदीक की सीमा के नजदीक होने के बावजूद यहां के लोगों को उचित मूल्य की दुकानों पर राशन लेने के लिए 16 किलोमीटर दूर बारां जिले के अंता में जाना पड़ता है

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मुख्यमंत्री को भेजे विधायक भरत सिंह कुंदनपुर का पत्र

-विधायक भरत सिंह का अवैध खनन को लेकर खनन मंत्री प्रमोद जैन ‘भाया’ पर तंज

-कृष्ण बलदेव हाडा-

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कृष्ण बलदेव हाडा

कोटा। राजस्थान में अवैध खनन के मसले को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक भरत सिंह कुंदनपुर ने एक बार फिर राज्य के खनन मंत्री प्रमोद जैन भाया पर हमला बोला और बारां जिले में शामिल किए गए गांव खान की झौपड़ियां में कथित रूप से व्यापक पैमाने पर हो रहे अवैध खनन को लेकर तंज कसते हुये कहा कि-” जब विभाग का मुखिया ही हो अंधा,तब अवैध खनन बन जाता है ईमानदारी का धंधा।” श्री भरत सिंह ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भेजे पत्र में कहा है कि-” बारां जिले में ईमानदारी, निष्ठा और समर्पण के साथ भ्रष्टाचार एवं अवैध खनन होता है। यही मैं आपको दिखाना चाहता था।”

उल्लेखनीय है कि खनन मंत्री प्रमोद जैन भाया के परिवार की ओर से संचालित श्री पार्श्वनाथ चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से आयोजित एक समारोह में भाग लेने के लिए गत 3 नवंबर को बारां आए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का उसी दिन सड़क मार्ग से बारां से कोटा लौटकर यहीं रात्रि विश्राम करने का कार्यक्रम था, तब श्री भरत सिंह ने मार्ग में खान की झौपड़ियां गांव की ओर जाने वाले रास्ते की सरहद पर मुख्यमंत्री के स्वागत का कार्यक्रम रख कर पूरी तैयारी कर ली, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों के जुटने की गोपनीय रिपोर्ट के बाद मुख्यमंत्री ने सड़क मार्ग से कोटा लौटने का कार्यक्रम ही रद्द कर दिया था। उस दिन उन्होंने कोटा की जगह बारां में ही रात्रि विश्राम किया था।

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अशोक गहलोत

अवैध खनन के साथ खान के झौपड़ियां गांव को लेकर इस बात पर भी विवाद है कि वर्ष 1991 में मोटे तौर पर काली सिंध नदी को विभाजन रेखा मानकर कोटा जिले से अलग कर बारां जिले का गठन किया गया था तो काली सिंध नदी के कोटा की ओर वाले छोर पर स्थित होने के बावजूद खान की झौपड़ियां गांव को अपवाद स्वरूप बारां जिले की सीमा में शामिल कर दिया गया जबकि कोटा-बारां राजमार्ग से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित गांव से पुलिस थाना और पंचायत समिति मुख्यालय अंता 16 किलोमीटर दूर है जबकि कोटा जिले का सीमलिया थाना बिल्कुल नजदीक है।

इस गांव के कोटा जिले के नजदीक की सीमा के नजदीक होने के बावजूद यहां के लोगों को उचित मूल्य की दुकानों पर राशन लेने के लिए 16 किलोमीटर दूर बारां जिले के अंता में जाना पड़ता है। श्री भरत सिंह लगातार खान की झौपड़ियां गांव को गलत तरीके से बारां जिले में शामिल करने के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। उन्होंने इस बात को बार-बार कहा है कि जब काली सिंध नदी को सीमा रेखा मानकर कोटा जिले से विभक्त कर तीन दशक पहले बारां जिले का गठन किया गया था तो खान की झौपड़ियां गांव कालीसिंध नदी के इस पार कोटा जिले वाले छोर में होने के बावजूद बारां जिले में क्यों है? उसे तो कोटा जिले में होना चाहिए। यदि खान के झौपड़ियां गांव में खाने वैधानिक तरीके से चल रही है तो इन खानों से खनिज विभाग को प्राप्त होने वाला राजस्व बारां जिलों के खाते में जा रहा है।

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भरत सिंह

कालीसिंध नदी के कोटा की ओर वाले छोर के गांव खान के झौपड़ियां को बारां जिले में शामिल किया हुआ है तो इसी छोर पर नदी के तीर पर ही गड़ेपान भी है जहां राजस्थान का प्रमुख खाद कारखाना चंबल फर्टिलाइजर एंड केमिकल लिमिटेड (सीएफसीएल) भी है तो उसे भी बारां जिले में शामिल कर लिया जाना चाहिए। जमीनी हकीकत यही है कि बारां जिले में होने के बावजूद रोजगार की दृष्टि से खान की झौपड़ियां गांव के लोग उनका जुड़ाव आज भी कोटा जिले से ही है। चाहे उन्हें रोजगार की तलाश में गड़ेपान की सीएफसीएल फैक्ट्री जाना पड़े या कोटा जिला मुख्यालय।

वैसे भी यहां खानें होने के बावजूद स्थानीय लोगों के पास रोजगार के अवसर नगण्य हैं क्योंकि बाहरी खनन ठेकेदार उनको तो केवल बारां जिले का राजनीतिक संरक्षण ही हासिल है, ठेकेदार तो अपनी खानों में काम करने के लिए मजदूर तक बाहर से ही लाते हैं। यहां के लोगों के पास खोने के लिए तो उनकी अपनी खेत-खलियान और बाड़े है लेकिन पाने के लिए तो दैनिक मजदूरी भी नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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