
-अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन 7 को आएंगे भारत की यात्रा पर
-द ओपिनियन-
नई दिल्ली में जी 20 देशों की बैठक की तैयारियां जोरों पर जारी हैं। 9 व 10 सितंबर को जी 20 की बैठक प्रस्तावित है। दुनिया की आर्थिक ताकतों का दो-तीन दिन तक दिल्ली में जमावड़ा रहेगा। दुनिया की अर्थव्यवस्था पर जी 20 देशों का दबदबा है। इसलिए यह बैठक बहुत अहम है। फिर अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन 7 से 10 दिसंबर तक भारत की यात्रा पर आएंगे। इसलिए राजनयिक व कूटनीतिक दृष्टि से यह बैठक बहुत ही अहम है। क्योंकि इस दौरान कई द्विपक्षीय बैठकें भी होंगी और महत्वपूर्ण फैसले होंगे। 20 देशों के नेता एक दूसरे से मिलेंगे। यह बैठक एक तरह से विश्व बिरादरी में भारत के बढ़ते रसूख को भी बताएगी। वर्तमान में दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स का सम्मेलन हो रहा है। सितंबर में इंडोनेशिया में आसियान देशों का शिखर सम्मेलन प्रस्तावित है। यानी यह एक माह दुनिया में कूटनीतिक गहमागहमी का है। जी 20 बैठक की तैयारियों का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि दिल्ली सरकार ने 8 से 10 नवंबर तक छुट्टी की घोषणा कर दी है। सुरक्षा के भी कड़े इंतजमाम किए जायेंगे । इसके लिए केंद्रीय बलों की 20-22 कंपनियां तैनात किए जाने की संभावना है ताकि कोई समस्या बाधा न बनें।
जी 20 सम्मेलन को सफल बनाना भारत के सामने बड़ी कूटनीतिक चुनौती होगी। भारत को दुनिया के विपरीत ध्रुवों के बीच संतुलन बनाकर चलना पड़ रहा है। हमारे लिए रूस से रिश्ते भी बहुत अहम हैं और अमेरिका से भी। इसलिए सम्मेलन को सफल बनाने की अहम चुनौती होगी। भारत की नीति वैश्विक मंच पर नेतृत्व की ओर बढ़ रही है। भारत जी 20 देशों की अध्यक्षता ऐसे समय कर रहा है जब दुनिया के भूराजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। यूक्रेन रूस के बीच युद्ध चल रहा है और चीन अमेरिका को लगातार चुनौती दे रहा है और दुनिया को अपने हिसाब से चलाना चाहता है। भारत यूक्रेन के मुद्दे पर बहुत से देश भारत के रूख से सहमत नहीं है लेकिन भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को देखना है। जी 20 की बैठक के साथ बाइडेन की यात्रा हो रही है। हाल ही पीएम मोदी ने अमेरिका की यात्रा की थी और दोनों देशों के बीच कई रक्षा समझौते हुए थे। अब बाइडेन की यात्रा रक्षा व आर्थिक सहयोग आगे ले जाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। भारत अमेरिका के रिश्तों में चीन भी एक कोण है और रूस दूसरा कोण है। चीन को भारत अमेरिका की दोस्ती अखरती है क्योंकि चीन दक्षिण एशिया में अपनी बादशाहत कायम रखना चाहता है।