
महागठबंधन टूट के कगार पर
-विष्णुदेव मंडल-

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के समय चुनाव प्रचार करते राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता तेजस्वी यादव के पुराने वीडियो और फोटो देखेंगे तो स्पष्ट पता चलता है कि उन्होंने बिहार में अपनी सरकार बनाने के लिए जी तोड मेहनत की थी। उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए अपने पिता लालू प्रसाद यादव, माता राबडी देवी के नाम का इस्तेमाल तक नहीं किया था। वह अक्सर कहा करते थे कि पुरानी बातें भूल जाइए जो पहले हो गया उसे हम वापस तो नहीं कर सकते लेकिन मैं आपसे वादा करते हंू कि हम ऐसा बिहार बनाएंगे जिनमें हर समाज का प्रतिनिधित्व होगा। हम ए टू जेड का पार्टी बनकर दिखाएंगे और कैबिनेट की पहली बैठक में 10 लाख लोगों को नौकरी देंगे।
वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार बिहार जीतने के लिए लालू राबडी देवी के डेढ दशक का पुराने कार्यकाल 1990 से 2005 तक के राष्ट्रीय जनता दल के शासन को भय दिखाकर बिहार की जनता से भावुक अपील कर रहे थे कि आप हमें फिर से चुनिए। हमने तो विकास किया है। हमने बिहार को जंगलराज से उबारा है। यह मेरा अंतिम चुनाव है।
तेजस्वी यादव का प्रयास से ही राष्ट्रीय जनता दल सबसे बडी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन संख्या बल कम होने के कारण वह सरकार नहीं बना सकी,जिनका मलाल उनको था।
एक बार फिर नीतीश कुमार पर बिहार के मतदाताओं ने विश्वास किया और उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई लेकिन अगस्त 2022 में पूर्व की तरह नीतीश कुमार का हृदय परिवर्तन हो गया। भाजपा से नाता तोड राष्ट्रीय जनता दल के साथ आ गए। लेकिन महज चार महीने में ही महागठबंधन में इतनी गांठ पड गई हैं जो बिहार के 13 करोड लोगों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि जब महागठबंधन में राष्ट्रीय जनतादल, कांग्रेस,जदयू ,सीपीआई सीपीएम भाकपा माले आदि पाटिया जुडी तो यह बात की जा रही थी कि यह सरकार अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा करेगी और बिहार को बेरोजगारी, पलायन आदि समस्याओं से निजात दिलाएगी लेकिन महज 5 महीने की सरकार में समस्या तो जस की तस हैं लेकिन बिहार के नेताओं और मंत्रियों की बदजुबानी ने गठबंधन में दरार पैदा कर दी है।
खासकर राष्ट्रीय जनता दल के विधायक और मंत्रियों का बडबोलेपन से यह प्रतीत होने लगा है की राष्ट्रीय जनता दल अभी भी पुराने ढर्रे पर ही है। जैसा कि नीतीश कुमार कहा करते थे। कहने को तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं लेकिन राष्ट्रीय जनतादल के कार्यकर्ताओं और नेता नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री ही नहीं मानते। यही वजह है की चंद्रशेखर यादव, आलोक मेहता, दिनेश मंडल, जगदानंद सिंह, सुधाकर सिंह सरीखे नेता पिछले कुछ महीनों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लगातार जुबानी हमले कर रहे हैं। वहीं, जदयू भी अपने सर्वमान्य नेता नीतीश कुमार पर हो रहे हमले के बचाव करने या फिर पलटवार करने के चक्कर में राष्ट्रीय जनता दल के खिलाफ आग उगल रहे हैं।
अब सवाल उठता है कि महज 5 महीनों से सरकार चला रहे महागठबंधन में इस तरह का सिरफुटौबल क्यों?
आखिर तेजस्वी यादव अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे। शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव, भूमि एवं राजस्व मंत्री आलोक मेहता जिस तरह का बयान दे रहे हैं क्या यह उचित है। क्या बोलने की आजादी के नाम पर हम किसी की धार्मिक आस्था पर चोट पहुंचा सकते हैं। किसी जाति को उकसा सकते हैं। आखिर क्या कारण है जो तेजस्वी यादव अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं का बचाव कर रहे हैं ? कहीं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव इन सब बयान वीर नेताओं के पीछे तो नहीं है?
यहां इस बात का उल्लेख करना भी बेहद जरूरी है कि 24 जनवरी को जब पटना में जदयू कार्यालय में कर्पूरी जयंती मनाई जा रही थी उसी समय जदयू संसदीय समिति के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा अपने आवास पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। वह यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि जदयू के नेता नीतीश कुमार पर जब आरजेडी के कार्यकर्ता और मंत्री हमलावर थे उस समय सिर्फ उपेंद्र कुशवाहा ही नीतीश कुमार के बचाव में उतरे थे। उन्होंने कहा कि हम पहले से ही नीतीश कुमार के साथ रहे हैं और अभी भी हम उनके साथ हैं ,लेकिन मुझे नहीं पता कि हमें क्यों अलग किया जा रहा है? उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि राष्ट्रीय जनता दल के अधिकांश नेता आधिकारिक तौर पर यह कह रहे हैं की महागठबंधन बनाने के समय राष्ट्रीय जनतादल और जदयू के बीच कोई डील हुआ था। वह डील क्या थी उस डील के बारे में पार्टी फोरम में रखी जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
बहरहाल उपेंद्र कुशवाहा खुद को महागठबंधन में उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। वह अपने पार्टी पर ही सवाल दाग रहे हैं कि हमारी पार्टी दिनों दिन कमजोर होती जा रही है। हमने अपनी पार्टी को मजबूत करने की बात रखी तो हमने क्या गुनाह किया? मेरे बोलने का नतीजा है कि अब तक जदयू का विलय राष्ट्रीय जनता दल के साथ नहीं हुआ। यदि हम चुप रहते तो पार्टी की विलय आरजेडी के साथ हो गया होता
आलम यह है कि जो नेता 5 महीने पहले बिहार को विकास के पथ पर ले जाने की बात करते थे वे दल और नेता कभी रामचरितमानस पर तो कभी जाति धर्म पर अनर्गल बयानबाजी कर रहे हैं। राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी सरकार को विजय रथ को रोकने के सपने देख रहे हैं जबकि देश में सर्वाधिक पिछड़ा राज्य बिहार को बनाने के बजाय अनर्गल बयानबाजी से बिहार के 13 करोड़ आबादी को आत्मा को चकनाचूर कर रहे हैं। तेजस्वी यादव को अपनी आत्मा की आवाज सुनना चाहिए और बड़बोले नेताओं को जुबान बंद करने के लिए कार्रवाई भी करने चाहिए।
(लेखक बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)