
-द ओपिनियन-
मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत की मांग तो पूरी नहीं हुई। हालांकि इसकी उम्मीद सभी लगाए हुए थे। क्योंकि बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम में मंगलवार को आयोजित इस कार्यक्रम को गुजरात के आसन्न विधानसभा चुनावों और अगले साल राजस्थान व गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों से जोड़ कर देखा जा रहा था। इसलिए इस बात की उम्मीद लगाई जा रही थी कि मानगढ़ धाम को राष्टीय स्मारक घोषित किया जा सकता है। लेकिन पीएम ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की। संभवतः उन्होंने इस कार्यक्रम को राजनीतिक रूप नहीं देना चाहा। लेकिन दो बातें अवश्य हुई। एक तो यह कि प्रधानमंत्री आदिवासी समुदाय के साथ अपने तार जोड़ने में सफल रहे। उन्होंने अपने संबोधन में कहा,, ‘दुर्भाग्य से आदिवासी समाज के इस बलिदान को इतिहास में जो जगह मिलनी चाहिए वह नहीं मिली। आज देश उस कमी को पूरा कर रहा है। भारत का अतीत, इतिहास, वर्तमान और भविष्य आदिवासी समाज के बिना पूरा नहीं होता है। इस बयान से पीएम आदिवासी समुदाय के साथ खड़े नजर आते हैं। दूसरी ओर मुख्यमंत्री गहलोत एक कद्दावर राजनेता के रूप में नजर आए जिनका सम्मान हर बड़ा नेता करता है। गहलोत ने कहा कि पीएम मोदी को दुनिया भर में सम्मान मिलता है, क्योंकि वह ऐसे देश के प्रधानमंत्री है, जहां लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हैं और जो महात्मा गांधी का देश है। गहलोत ने यह कहकर कांग्रेस की अहमियत को रेखांकित कर दिया कि इस देश में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने में कांग्रेस का अहम योगदान है। साफ है दोनों नेता जिस सहजता से मंच पर नजर आए वह राजनीतिक सौहार्द की तस्वीर ही बयां करता है।

मानगढ़ धाम के लिए कोई भी घोषणा केवल सियासी फायदे को देखकर की भी नहीं जानी चाहिए। यह राष्ट्र का गौरव स्थल है। आदिवासियों के बलिदान की गाथा कहता है। हां, यह आमजन के सामने आने में पिछड़ गया। इसकी गौरव गाथा अब लोगों तक पहुंचनी चाहिए। जहां करीब 1500 लोगों ने गोविंद गुरु के आह्वान पर अपने प्राणों की बलि दे दी लेकिन अंग्रेजों के सामने झुके नहीं। इसलिए मानगढ़ को एक राष्ट्रीय स्मारक का गौरव मिलना ही चाहिए। प्रधानमंत्री ने यहां राजस्थान, महाराष्ट्र , गुजरात व मध्य प्रदेश को मिलकर मानगढ़ के विकास का रोडमैप तैयार करने का सुझाव दिया। यह अहम बात है। यदि ये चारों राज्य आगे आते हैं तो इसे एक गौरव स्थल के रूप में विकसित करने की राह और भी आसान होगी। देश में अनेक ऐसे लोग हैं जिन्हें इतिहास में उचित स्थान नहीं मिला। लेकिन जो इस सम्मान से वंचित रह गए हैं उनको यह सम्मान दिया जाना चाहिए। इस कार्यक्रम के सियासी सुर पर भी गौर करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री की वरिष्ठता का जिक्र किया और उनकी प्रशंसा की। दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की कि वे विदेश में जहां जाते हैं वहीं सम्मान पाते हैं। अब इसके कई सियासी मायने निकाले जा सकते हैं लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि यह किसी पार्टी का कार्यक्रम नहीं था। शहीदों के गौरव और उनको नमन करने कार्यक्रम था इसलिए वहां राजनीतिक सुर भी पार्टी की राजनीति से परे ही होने चाहिए थे। और हुआ भी ऐसा ही। यह राजनीतिक सौहार्द पार्टियों के मंच से इतर किसी भी मंच पर नजर आना चााहिए। यह स्वागत योग्य है।