भारत का यह प्रदर्शन कुल मिलाकर कई मायनों में सुखद
द ओपिनियन डेस्क
बर्मिघम में सम्पन्न राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के शानदार प्रदर्शन ने साबित कर दिया कि यदि ग्रास रुट लेवल पर खेलों को बढ़ावा देने के प्रयास किए जाएं तो परिणाम सुखद ही आएंगे। भारत ने इन खेलों में 22 स्वर्ण पदक समेत 61 पदक जीते और पदक तालिका में चौथा स्थान हासिल किया। यदि इस प्रतियोगिता में निशानेबाजी को भी शामिल किया गया होता तो भारत तीसरे नंबर पर भी पहुंच सकता था। भारत का यह प्रदर्शन कुल मिलाकर कई मायनों में सुखद है विशेषकर थामस कप में ऐतिहासिक सफलता के बाद इन खेलों में बैडमिंटन में तीन स्वर्ण पदक जीतकर यह साबित कर देना कि विश्व की सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में भारत की जीत कोई तुक्का नहीं थी। भारत अब इस खेल में नई शक्ति के तौर पर उभर रहा है। अब प्रकाश पादुकोण और गोपी चंद जैसी कभी कभार उभरने वाली प्रतिभाओं वाला देश नहीं रहा। प्रतिभाओं की लम्बी कतार भारत के पास मौजूद है। पीवी सिंधू तो खैर स्टार बन चुकी हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतिष्ठित खिताब जीत चुकी हैं। लेकिन युवा लक्ष्य सेन की जीत इस खेल में भारत के बढ़ते दबदबे को इंगित करती है। इसके अलावा एथलेटिक्स में नए खिलाडिय़ों की सफलता भविष्य की उम्मीद जगाती है। वास्तव में एथलेटिक्स में सफलता को बहुत महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए और इस ओर विशेषरुप से ध्यान देने की जरुरत है क्योंकि यदि भारत को ओलम्पिक और एशियाई खेलों में पदक तालिका में टॉप के देशों में शामिल होना है तो आप एथलेटिक्स को नजर अंदाज नहीं कर सकते।
खेलो इंडिया मिशन का बहुत बड़ा हाथ
भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाल ही के खेलों में इन सफलताओं के पीछे खेलो इंडिया मिशन का बहुत बड़ा हाथ है। 2017 में शुरू हुए इस कार्यक्रम में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के तहत खेल सुविधाएं दी गईं। इसका उद्देश्य संभावित खिलाडिय़ों के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना था। इसमें प्रतिभा की पहचान, खेल प्रतियोगिताओं और बुनियादी ढांचे का विकास किया गया। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में खेल के क्षेत्र में लगातार प्रगति की है। इसके पीछे युवा प्रतिभाओं को प्रेरित कर उन्हें शीर्ष स्तर का बुनियादी ढांचा और उच्चतम स्तर का प्रशिक्षण दिया जाना रहा। देखा जाए तो कई सफल खिलाड़ी खेलो इंडिया के तहत मिली सुविधाओं और चयन से ही तैयार हुए।
यह भी ध्यान रखना होगा कि सुविधाएं और प्रदर्शन एक दूसरे के पूरक हैं। जब खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो देश में खेल का माहौल बनता है और सरकार तथा निजी क्षेत्र भी इसमें निवेश को तैयार होते हैं। जब निवेश से खेल की सुविधाएं बढ़ती हैं और रोजगार के साथ पैसा भी आता है तो खिलाड़ी जी जान से तैयारी करता है। भारत में क्रिकेट इसका उदाहरण है। कपिल देव के नेतृत्व में भारतीय टीम की ऐतिहासिक विश्व कप विजय के बाद से भारत में क्रिकेट का माहौल बना और कभी भद्र जनों का यह शौकिया खेल आज यह न केवल पैसे बरसाने वाला खेल बन चुका है बल्कि भारत में आईपीएल ने क्रिकेट का ढांचा ही बदल दिया।
भारत सबक के तौर पर ले
भारत को राष्ट्रमंडल खेलों को एक सबक के तौर पर लेना चाहिए। जिस तरह इस बार इन खेलों में शूटिंग नहीं थी वैसे ही अगले खेलों में कुश्ती नहीं होगी। कुश्ती भारत के लिए पदक जीतने वाला खेल है और हाल ही के वर्षों में पुरुषों के साथ महिला पहलवानों ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाप छोड़ी है। ऐसे में अगले राष्ट्रमंडल खेलों के लिए ऐसे खेलों को चुनकर तैयारी करनी होगी जिनसे भारत को ज्यादा पदक मिल सकें। यह भी ध्यान देना होगा कि जिन खेलों अच्छे होने के बावजूद सफल क्यों नहीं हुए। इस तरह की खामियों को जड़ से दूर किया जाना जरुरी है ताकि भारतीय खिलाडिय़ों पर बड़ी प्रतियोगिताओं में सफल नहीं हो पाने धब्बा नहीं लगे।