न वो आया न कुछ पैग़ाम* आया। तड़पना दिल का फिर किस काम आया।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

सफ़र में जब सुकूते-शाम* आया।
मुसाफ़िर को बड़ा आराम आया।।
*
न वो आया न कुछ पैग़ाम* आया।
तड़पना दिल का फिर किस काम आया।।
*
वही महफ़िल में रक़्स ए ज़िंदगी* है।
वही गर्दिश* में अपना जाम आया।।
*
चराग़ों को सियासत ने बुझाया।
मगर फिर भी हवा का नाम आया।।
*
बहुत ताक़त थी जिसके बालो-पर*में।
परिंदा वो भी ज़ेरे-दाम* आया।।
*
कोई बुत* दिल में आकर बस गया क्या।
लबों पर क्यूँ ख़ुदा का नाम आया।।
*
ख़िरद* हर गाम पर भटका रही थी।
जुनूॅं* का रास्ता ही काम आया।।
*
निकलना था हमें जन्नत से “अनवर”।
मगर आदम पे ये इल्ज़ाम आया।।
*

सुकूते-शाम*शाम का सन्नाटा
पैग़ाम*संदेश
रक़्स ए जिंदगी*जीवन का नृत्य
गर्दिश*समय का चक्र
बालो-पर*परिंदे के बाल और पर
ज़ेरे-दाम*जाल के अंदर फंसना
बुत* मूर्ति, प्रेमिका
ख़िरद*अक़्ल,बुद्धि
जूनूॅं* दीवानगी

शकूर अनवर
9460851271

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