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-द ओपीनियन डेस्क-
कांग्रेस ने अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए गत दिनों अपना कार्यक्रम घोषित कर दिया था। लेकिन नया अध्यक्ष कौन होगा इसको लेकर अभी तस्वीर साफ नहीं हुई है। इसके साथ ही चुनाव को लेकर सियासी घमासान भी तेज होता नजर आ रहा है। अब राजनीतिक हलकों में यह सवाल तैर रहा है कि क्या इस बार वर्षों से चली आ रही परम्परा से हटकर अध्यक्ष पद के लिए मतदान की नौबत आएगी। वह भी तब जब गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में होगा।

राहुल गांधी

अभी तक कांग्रेस के कई नेता राहुल गांधी के फिर से पार्टी की बागडोर संभालने की हिमायत कर रहे हैं। लेकिन मनीष तिवारी और शशि थरूर ने पारदर्शी व निष्पक्ष तरीके चुनाव कराने की बात कहकर संभावित सियासी टकराव के संकेत दे दिए हैं। मनीष तिवारी ने पार्टी प्रतिनिधियों यानी डेलीगेट की सूची को सार्वजनिक किए जाने की मांग कर एक बहस शुरू कर दी। मतदान की नौबत आने पर ये डेलिगेट ही पार्टी अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। पार्टी के दो अन्य सांसदों शशि थरूर व क्रार्ति चिदंबरम ने भी उनकी इस मांग का यह कहते हुए समर्थन किया है कि इसमें गलत क्या है। डेलीगेट्स के नाम सामने आने से चुनाव प्रक्रिया और पारदर्शी हो जाएगी। तिवारी ने बुधवार को एक ट्वीट कर कांग्रेस के केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण के प्रमुख मधुसूदन मिस्त्री से सवाल किया कि निर्वाचन सूची के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हुए बिना चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष कैसे हो सकता है।

शशि थरूर

निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव का अधार यही है कि प्रतिनिधियों के नाम व पते कांग्रेस की वेबसाइट पर पारदर्शी तरीके से प्रकाशित होने चाहिए। लेकिन मधुसूदन मिस्त्री तिवारी की इस मांग पर सहमत नहीं है। मिस्त्री ने कहा कि सूची को सार्वजनिक करने का कोई अर्थ नहीं है। यह जनता से जुड़ा विषय नहीं है। कांग्रेस की हर प्रदेश कमेटीे के पास इनके नाम है। वे फोन करके ले सकते हैं। साफ है कि कांग्रेस का एक बड़ा पक्ष जिस तरीके से चुनाव चाहता है उस तरीके से दूसरा पक्ष सहमत नहीं है। हालांकि कहा यही जा रहा है कि चुनाव कार्यक्रम घोषित हो गया है और जो चुनाव लड़ना चाहता है वह चुनावी मैदान में उतर सकता है।

मनीष तिवारी

गांधी परिवार से बाहर के सीताराम केसरी निर्वाचित अध्यक्ष बने थे। उसके बाद जितेंद्र प्रसाद और राजेश पायलट ने चुनाव लड़ा था लेकिन वे अपेक्षित समर्थन नहीं पा सके थे। राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठे हैं लेकिन हालात बहुत नहीं बदले हैं। यदि गांधी परिवार से कोई अध्यक्ष पद के लिए मैदान में आता है तो फिर मतदान होने पर भी बागडोर उनको मिलनी तय है। सवाल यह है कि क्या गांधी परिवार पार्टी की बागडोर किसी और को सौंपना चाहेगा या खुद ही संभालकर रखेगा। यदि गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में न उतरे और फिर चुनाव हों तभी पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र की ताकत का पता चल सकता है। गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ता है तो जैसा कि पार्टी की परम्परा रहती आई है, नतीजे एकतरफा ही रहेंगे। अब आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि गांधी परिवार खासकर राहुल गांधी क्या रुख अपनाते हैं। तभी डेलीगेट्स के नाम सावजनिक होने के मायने होंगे। अन्यथा तो सर्वसम्मति का रास्ता तय हैै।

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