‘नफरत की आग किसी को नहीं बख्शती’

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-धर्म और जाति के नाम पर समाज को तोडने वाली शक्तियों के प्रति सचेत रहने का आह्वान

-शांति -सद्भावना मिशन की ओर से आयोजित सम्मलेन में बोले वक्ता 

कोटा। शांति -सद्भावना मिशन की ओर से आज 26 अगस्त को ,कोटा के कृषि सभागार में आयोजित शांति सद्भावना सम्मलेन में वक्ताओं ने देश में धर्म और जाति के नाम पर समाज को तोडने वाली शक्तियों के प्रति सचेत रहने का आह्वान किया। सम्मेलन मुख्य वक्ता प्रमुख किसान नेता और दो बार विधायक रहे डॉ सुनीलम थे। गांधी वाधी विचारक और सर्व सेवा संघ राजस्थान के अध्यक्ष सवाई सिंह तथा मजदूर-किसान आंदोलन के अग्रणी नेता ताराचंद सिद्धू ने संबोधित किया। वक्ताओं का कहना था कि धर्म,जाति , नस्ल के नाम पर देश -समाज को तोड़ने वाली शक्तियां अपने वर्चस्व और प्रभुत्व से देश के साधारण जन के लोकतांत्रिक -संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने में लगी हैं। मंहगाई और बेरोजगारी ने आम जन का जीना मुहाल कर दिया है। उन्होंने सभी से एसी विघटनकारी शक्तियों के खिलाफ मिलकर संघर्ष करने की अपील की। सम्मेलन में कोटा संभाग के प्रतिनिधि श्रमिक, किसान, कर्मचारी, दलित, युवा, छात्र, महिला संगठनो के अलावा साहित्यकार, कलाकार एवं जनतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित हुए।

मुख्य वक्ता डॉ सुनीलम ने कहा कि जाति के आधार पर देशद्रोही करार देने की प्रवृति पर रोक लगाने की जरुरत है। उन्होंने नूह दंगों का उदाहरण देते हुए कहा कि देश का कोई कानून किसी के घर को बर्बाद करने की आज्ञा नहीं देता लेकिन नूह में सात सौ मकान ध्वस्त कर दिए। उन्होंने कहा कि मणिपुर में जो कुछ हुआ इसी तरह नफरत फैलाने का परिणाम है। मुजफ्फरपुर में एक स्कूल में बच्चे की पिटाई भी इसी तरह की नफरत का नतीजा है। उन्होंने लोगों को सावचेत करते हुए कहा कि जो लोग आपके बच्चों को दंगाई बना रहे हैं वे अपने बच्चों को विदेश में पढा रहे हैं।

राजस्थान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रदेश सचिव रहे ताराचंद सिद्धू ने कहा कि घोर पंूजीवादी व्यवस्था मणिपुर संकट की जड में है। उन्होंने आरोप लगाया कि मणिपुर के जंगलों में पॉमोलिन की खेती के लिए जमीन अपने चहेते उद्योगपति को देने के लिए  जंगलों को आदिवासियों से खाली कराने के लिए यह संकट खडा किया गया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राजस्थान में एक हजार किलोमीटर से अधिक सडकें निजी क्षेत्र को दी गई हैं। इन सडकों पर किस का वाहन चलेगा यह इस सडक के मालिक तय करेंगे। उन्होंने कहा कि हर चीज निजी क्षेत्र में दी जा रही है। उन्होंने कहा कि यदि हम आम जन की समस्याओं से निरपेक्ष रहेंगे तो खुद का भी नुकसान करेंगें उन्होंने रोडवेज का उदाहरण देते हुए कि चालक और परिचालक ढाई हजार नई बसें चालू करने की मांग कर रहे हैं लेकिन हम यह मानकर चल रहे हैं कि यह उनकी मांग है। लेकिन यदि रोडवेज नई बस चलाता है तो क्या हमें लाभ नहीं मिलेगा। फिर हम उनकी मांग के प्रति निरपेक्ष कैसे रह सकते हैं।

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