
-संजीव कुमार-

(स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार)
भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए दस महीने का वक्त बचा है, ऐसे में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं ने अपने परिजनों को टिकट दिलाने के लिए लामबंदी तेज कर दी है। इन नेताओं ने विभिन्न कारणों से खुद चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है और पार्टी से गुजारिश की है कि उनके बदले उनके परिजनों को टिकट दिया जाए।
मप्र में ऐसे करीब 12 नेता हैं,जिनके अपने टिकट दावेदारी कर रहे हैं। ये नेता खुलेतौर पर अपनी विरासत अगली पीढ़ी को सौंपने के लिए जोर लगा रहे हैं।
प्रदेश भाजपा के लिए यह पहला मौका नहीं है, जब चुनाव से पहले उम्रदराज कद्दावर नेता स्वेच्छा से रिटायरमेंट की घोषणा कर अपने परिजनों की राजनीतिक पारी का आगाज करने जा रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय ने अपने बेटे आकाश को आगे कर उसे टिकट दिलाकर विधायक बनवाया था। ऐसा ही कुछ पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार ने किया था। उन्होंने अपने बेटे को टिकट दिलाकर उसकी विधायकी पक्की करने की कोशिश की, यह बात और है कि उनके बेटे को हार का मुंह देखना पड़ा। अब शेजवार एक बार फिर अपने बेटे के टिकट के लिए जोर लगा रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान भी अपने पिता के क्षेत्र बुधनी में सक्रिय हैं। भाजपा के कई मंचों को वह संबोधित कर चुके हैं। कार्तिकेय सिंह पिछले दो विधानसभा चुनाव में अपने पिता के लिए प्रचार कर चुके हैं।
ग्वालियर, चंबल और मालवा अंचल के कुछ हिस्सों में प्रभाव रखने वाले सिंधिया परिवार और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यमन राजनीति में उतरने का संकेत दे रहे हैं। महाआर्यमन ने पिछले लोकसभा चुनाव में अपने पिता के लिए चुनाव प्रचार भी किया था। ज्योतिरादित्य के भाजपा में जाने के समय महाआर्यमन के एक ट्वीट ने खासी सुर्खियां बटोरी थी, इस ट्वीट में उन्होंने अपने पिता के फैसले को गर्व का क्षण बताया था। स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि पिछले कुछ समय से महाआर्यमन की सार्वजनिक कार्यक्रमों में सक्रियता बढ़ गई है।
ग्वालियर सीट से सांसद और केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर के बेटे देवेन्द्र प्रताप सिंह भी राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं। उन्हें अपने पिता का उत्तराधिकारी कहा जा रहा है। ग्वालियर से ही राज्य भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व सांसद प्रभात झा के बेटे तुष्मुल झा भी क्षेत्र में सक्रिय हो चुके हैं। इतना ही नहीं, ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में गञहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा भी अपनी सक्रियता बढ़ा रहे हैं। सुकर्ण वर्तमान में प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य हैं। नरोत्तम मिश्रा इसी क्षेत्र की दतिया सीट से वर्तमान में विधायक हैं।
अपनी विरासत आगे बढ़ाने में सिंधिया समर्थक मंत्री भी पीछे नहीं है। राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के बेटे आकाश ने सुरखी विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में प्रचार का जिम्मा संभाला। मंत्री तुलसी सिलावट के बेटे नीतिश भी अपने पिता के साथ क्षेत्र के दौरे में अक्सर साथ देखे जाते हैं। जानकारों के मुताबिक प्रदेश भाजपा के ऐसे नेताओं की लिस्ट काफी लंबी है जो आगामी विधानसभा चुनाव में अपने परिजनों को राजनीतिक रूप से सक्रिय करने जा रहे हैं।
इस सूची में भाजपा के दिवंगत प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान के बेटे हर्षवर्धन चौहान, मंत्री विजय शाह के बेटे दिव्यादित्य शाह, विधायक सुलोचना रावत के बेटे विशाल रावत, पूर्व मंत्री रूस्तम सिंह के बेटे राकेश सिंह, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के बेटे मंदार, मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक शामिल हैं।
भाजपा भले ही कांग्रेस पर परिवारवाद को लेकर हमलावर रहती हो लेकिन उसे भी परिवारवाद अपनाने से गुरेज नहीं है। प्रदेश भाजपा में ऐसा होता रहा है। जहां पूर्व मुख्यमंत्री,केन्द्रीय मंत्री, सांसद, विधायक के परिजन राजनीति में सक्रिय हैं।
ऐसे नेताओं में पूर्व सीएम वीरेंद्र कुमार सखलेचा के बेटे ओमप्रकाश सखलेचा(मंत्री), पूर्व सीएम बाबूलाल गौर की पुत्रवधु कृष्णा गौर (विधायक), पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा (पूर्व मंत्री), पूर्व सीएम कैलास जोशी के बेटे दीपक जोशी (पूर्वमंत्री), पूर्व केन्द्रीय मंत्री थावरचन्द्र गहलोत केे बेटे जितेंद्र गहलोत (पूर्व विधायक), पूर्व सांसद कैलाश सारंग के बेटे विश्वास सारंग (मंत्री), पूर्व विधायक सत्येंद्र पाठक के बेटे संजय पाठक आदि नाम शामिल हैं।
अब ऐसे में सभी की निगाहें इस पर लगी हैं कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस मामले पर क्या रूख लेता है।