
-देवेन्द्र कुमार शर्मा-

कोटा। कोटा में मुख्य वन संरक्षक कार्यालय में सभी वन कर्मी 6 फरवरी से धरने पर बैठे हैं। उनका कहना है कि जंगल में सारा दिन ड्यूटी देने के बाद भी उनका वेतनमान पुलिस के कांस्टेबल से कम है। वन संपदा को बचाने के लिए वो पटवारी और पुलिस, दोनों का काम करते हैं लेकिन उनको वेतन कम दिया जा रहा है। जंगल में ड्यूटी करने के बाद भी उनको मेस एलाउंस नही मिलता न हार्ड ड्यूटी एलाउंस दिया जाता है।
ड्रेस एलाउंस उनको 1600 रु वार्षिक दिया जाता है जबकि पुलिस वालों को 7000 वार्षिक मिलता है। प्रमोशन के मौके भी उनको बहुत कम मिलते है।
आज बढ़ती जनसंख्या एवं उद्योगीकरण के कारण पेड़ों की संख्या लगातार कम हो रही है और वन रक्षक पेड़ों की रक्षा में मुस्तेदी से लगे हुए हैं, उनके हितों की अनदेखी वनों की सुरक्षा और पर्यावरण को खतरे में डाल देगी।
हमें उम्मीद करनी चाहिए कि राजस्थान सरकार अपने वन कर्मियों की न्यायोचित मांगों पर ध्यान देगी और उनकी समस्याओं का समाधान करेगी।
यह भी विचारणीय बिंदू है कि जिन पर वप्य जीवों की रक्षा का भार है वे धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। यदि ये अपनी डृयूटी पर नहीं होंगे तो वनों और वन्य जीव किसके भरोसे हैं। वैसे ही वन क्षेत्र लगातार घटता जा रहा है जिसके दुष्परिणाम आए दिन प्राकृतिक आपदाओं के तौर पर हम देख रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि इनकी उचित मांगों पर सरकार संज्ञान ले और सर्वमान्य तरीके से हल निकाले। इनको धरने और प्रदर्शन के लिए विवश करना कतई उचित नहीं कहा जा सकतां। उनकी कठिन ड्यूटी को ध्यान रखा जाना चाहिए।
(लेखक रेलवे के सेवानिवृत अधिकारी हैं और पर्यावरण, वन्य जीव एवं पक्षियों के अध्ययन के क्षेत्र में कार्यरत हैं)